संविधान खात्मे की ओर...

संविधान खात्मे की ओर है इसलिए पुर्नगठन करना जरूरी, डीओएम कोई संगठन नहीं है बल्कि एक मंच: डॉ. उदित राज

कुलवंत कौर, संवाददाता 

नई दिल्ली। दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में रविवार को दलित, ओबीसी एवं माइनॉरिटीज़ परिसंघ(डीओएम परिसंघ) का पुर्नगठन किया गया और आगे की चुनौती के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस मौके पर पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डीओएम परिसंघ, डॉ. उदित राज ने कहा, 'अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ पाँच आरक्षण विरोधी आदेशों को निरस्त करने के लिए 1997 में गठित हुआ और संघर्ष करके 81वाँ, 82वाँ और 85वाँ सवैधानिक संशोधन कराने में सफल रहा और आरक्षण बच सका। बहुजन लोकपाल बिल पेश किया और इसमें 50% का आरक्षण एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाओं को मिला। निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए संघर्ष किया।' डॉ. उदित राज ने कहा, 'संविधान खात्मे की ओर है और अब यह लड़ाई सिर्फ एससी/एसटी नहीं लड़ सकते इसलिए अब पुनर्गठन करना जरूरी है और ओबीसी और अल्पसंख्यकों को शामिल करने का निर्णय लिया गया है। अब यह दलित, ओबीसी और माइनॉरिटीज परिसंघ (DOM परिसंघ) के नाम से जाना जाएगा।'

उन्होंने कहा, 'बहुजन जागृति से अगर जागरूकता पैदा हुई तो बिखराव उससे कहीं ज्यादा हुआ। जब जागृति नहीं थी तो आरक्षण लागू हुआ, भूमि वितरण, वजीफा, कोटा और परमिट आदि मिले। जो जागृत हुआ अपना संगठन बना बैठा। सोच तो शिक्षित, संगठित और संघर्ष की थी लेकिन एक दूसरे से बेहतर साबित करना और आलोचना तक सीमित रह गये। एमएलए, एमपी या सम्मान प्राप्त करने के लिये सस्ता और आत्मघाती मार्ग चुना और उपजाति को परोक्ष और अपरोक्ष से सहारा लिया और फिर दूसरी जाति के कार्यकर्ता व नेता कहाँ पीछे रहते ? खुद तो उपजाति के जाल में फसे रहे और सवर्णों को कहा सुधरो। यह कैसी विडंबना है?'

उन्होंने आगे कहा कि पिछड़ों को जब आरक्षण मिला तो साथ दिये कमंडल वालों का। मण्डल के विरोध में कमंडल पैदा हुआ और सत्ता तक पहुँचा दिया। सवर्ण बनने की कतार में ओबीसी वर्ग दलितों के मुकाबले में खड़ा हो गया लेकिन अब हालात बदले हैं। मण्डल से नौकरी और शिक्षा में जगह बनी और यह जागृति का आधार बना और अब जुड़ने के लिए तैयार हो गये हैं। मुस्लिम समाज नौकरी, शिक्षा और अधिकार के लिये शायद ही कभी लड़ा। जिन्हें वे दोस्त मानते रहे उन्होंने दलितों-पिछड़ों से लड़ाने का काम किया। दलित और पिछड़े जागरूक न होने के कारण मुस्लिम और ईसाई के विरोध में खड़े होते रहे। अब यह चाल समझ में आने लगी है। 

डॉ. उदित ने कहा , 'अब जरूरत है सबको एक होकर लोकतंत्र बचाने के लिए साथ आने की, तभी वर्तमान चुनौतियों जैसे-ईवीएम को हटाना, संविधान व लोकतंत्र की रक्षा, निजीकरण पर रोक, सरकारी नौकरियों में आबादी के अनुसार भागीदारी, जाति जनगणना, पुरानी पेंशन की बहाली, बैकलाग पदों पर भर्ती, निजी संस्थानों व उच्च न्यायपालिका में आरक्षण आदि की लड़ाई लड़ी जा सकती है।'

*DOM का इसलिए महत्व*

डॉ. उदित सम्मेलन के दौरान इस परिसंघ का महत्व बताते हुए कहा , ' वास्तव में यह कोई संगठन नहीं है बल्कि एक मंच हैं। अगर यह खुद में संगठन होगा तो दूसरों को कैसे जोड़ा जाएगा ? DOM परिसंघ सबके बीच समन्वय का कार्य करेगा। इसमें कोई बड़ा या छोटा नहीं होगा और न ही किसी व्यक्ति के मान-सम्मान में कमी का संकट खड़ा होगा। मुद्दों पर संघर्ष होगा।'

*मांगे गए सुझाव*

कांस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में DOM परिसंघ के पुनर्गठन के मौके पर सुझाव मांगे गए। डीओएम राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से सुझाव मांगते हुए कहा गया कि आपका सुझाव संगठन, रणनीति और मुद्दे की लड़ाई के लिए क्रांतिकारी सिद्ध हो सकता है, जिन्हें शामिल करते हुए देश में एक नई क्रांति का आगाज किया जाएगा। आज राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकारिणी बनाने के लिए भी पूरे देश से विभिन्न संगठनों के नेताओं को चिन्हित किया गया। 

आज के इस सम्मेलन में दिल्ली के अलावा बिहार, गुजरात, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, चंडीगढ़, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब , राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल आदि प्रदेशों से विभिन्न संगठनों के नेताओं ने शिरकत किया। शीघ्र ही पूरे देश में इसका विस्तार किया जाएगा।

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