प्रगति मैदान दिल्ली में विश्व पुस्तक मेला 2024
बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली। विश्व पुस्तक मेला 2024 भाषा, कला और संस्कृति के समागम ने पाठकों की अपार भीड़ को अपनी ओर खींचा। रविवार को पूरा प्रगति मैदान पुस्तक—प्रेमियों से खचाखच भरा रहा। एक तरफ जहाँ छोटे—बड़े हर उम्र के बच्चे हॉल 3 में बालमंडप में आयोजित होने वाली रचनात्मक गतिविधियों के साथ विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित पुस्तकों का आनंद लेते दिखे, वहीं युवा पाठकों की भीड़ अपनी भाषा, पसंदीदा विषय के उपन्यास, जीवनियों, तकनीकी पुस्तकों पर लगी रही। परीक्षाएँ शुरू होने से पहले पुस्तकों से बच्चों का प्रेम हर किसी के दिल को लुभाता दिखा। कोई अपने बच्चों को स्ट्रोलर पर लाया तो कोई अपने वृद्ध माता—पिता को व्हील चेयर के सहारे विश्व पुस्तक मेले की सैर कराता दिखा।
भारत की भाषाई विविधता से सजे विश्व पुस्तक मेले में बच्चों और युवाओं के बहुत कुछ खास है। हॉल 5 के रिसेप्शन पर लेखक और चित्रकार अभिषेक ने पेंटिंग बनाई, जिसमें उन्होंने दर्शाया कि पशु—पक्षी किस तरह प्रकृति की भाषा समझते हैं। भाषा जितनी अहम मनुष्य के लिए है, उतनी पशु—पक्षियों के लिए भी है। उनमें वह शक्ति होती है जिससे वह प्रकृति की भाषा को आसानी से समझते हैं और खुद को प्रकृति के अनुरूप ढाल लेते हैं। बच्चों की भीड़ बालमंडप पर भी खूब दिखी, जहाँ प्रसिद्ध लेखिका और पूर्व आईएएस अधिकारी अनीता भटनागर से कहानी सुनकर बच्चों ने अपने मन में उठे प्रश्न पूछे, वहीं रूस से आई लेखिका एल्योना करीमोवा ने चित्रकथा से रूस के "तातार" समुदाय की एक दादी की मजेदार कहानी सुनाकर बच्चों को अभिभावकों की बात मानने को प्रेरित किया। खेल—खेल में कैसे सिखा जा सकता है, इसकी भरपूर विश्व पुस्तक मेले में देखने को मिली।
फैबरिक किताबें बनी बच्चों की पसंद
एफ—17 हॉल 4 में स्काई कल्चर द्वारा तैयार की गई बच्चों की वॉशेबल फैबरिक पुस्तकें हैं, जो 6 महीने के बच्चों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई हैं। इन पुस्तकों की खासियत है कि ये वॉशेबल कपड़े पर तैयार की गई हैं ताकि बिना फटे, खराब हुए लंबे समय तक ये नन्हे—नन्हे बच्चों के पास रहे और उनमें चित्रों के माध्यम से तरह—तरह चीजों को समझने और पढ़ने की आदत विकसित की जा सके। ये फैबरिक किताबें हिंदी, कन्नड़, मलयालम, असमिया, कश्मीरी भाषाओं में भारतीय सभ्यता और संस्कृति को दर्शाती हैं।
साइबर अपराध से कैसे बचे बच्चे और युवा
विश्व पुस्तक मेले में आयोजित "हिडन फाइल्स-डिकोडिंग साइबर क्रिमिनल्स एंड फ्यूचर क्राइम्स" एक दिलचस्प सत्र में भारत के प्रसिद्ध साइबर क्राइम एक्सपर्ट अमित दुबे ने आरजे स्वाति के साथ अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने साइबर अपराध से सावधान रहने के टिप्स देते हुए कहा, ''अपराधी यूजर्स का मोबाइल फोन हैक नहीं करते, बल्कि उनका दिमाग हैक करते हैं। अधिकतर बच्चे और युवा इसका शिकार होते हैं। इससे बचने के लिए बच्चों और युवाओं को साइबर क्राइम की किताबें पढ़नी चाहिए। मैंने अब तक करीबन दो लाख पुलिसवालों को प्रशिक्षित किया है, लेकिन आम लोगों के लिए साइबर अपराध के प्रति सचेत करने के लिए कहानियाँ ही सबसे अच्छा माध्यम हैं।''
रविवार को 'द लल्लनटॉप' से मशहूर हुए सौरभ द्विवेदी के एक कार्यक्रम में भी लोगों को अपनी आकर्षित किया। उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा पर बात करते हुए बताया कि किस प्रकार लाइब्रेरी ने किताबों के प्रति उनके प्यार को जगाया और उनके प्रतिष्ठित शो को प्रेरित किया। उन्होंने युवाओं से कहा कि भाषा ऐसी होनी चाहिए कि बात दिल को छू जाए।
रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह की खबरों पर ध्यान केंद्रित हो, किसी खबर को कैसे देखा जाए और उसमें भावनात्मक मूल्य को डाला जाए, इन सब विषयों पर बात करते हुए उन्होंने कोविड के दौरान की कवरेज में अपने अनुभवों को साझा किया और कहा कि एक पत्रकार के लिए पढ़ना सांस लेने जितना महत्वपूर्ण है। यदि किताबें नहीं पढ़ेंगे, तो लोगों को पढ़ना असंभव है। समय पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह लोगों के लिए उतना ही है जितना कि मेरे लिए, लेकिन हमें समय प्रबंधन की बेहतर समझ विकसित करनी होगी।
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