संकल्प: विकसित भारत@2047...

दिल्ली विश्वविद्यालय में विकसित भारत अभियान को समर्पित, ‘संकल्प: विकसित भारत@2047’ विषयक विशेष आयोजन

बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार 

नई दिल्ली। छत्रपति शिवाजी जयंती’ 2024 के उपलक्ष्य में दिल्ली विश्वविद्यालय की मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘संकल्प: विकसित भारत @2047’ विषयक एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया। ‘विकसित भारत @2047’ अभियान के अंतर्गत विश्वविद्यालय में यह विशेष कार्यक्रम था। दिल्ली विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. योगेश सिंह इस आयोजन में मुख्य वक्ता रहे।

मुख्य वक्ता प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि नए भारत की बदलती तस्वीर हमारे सामने है। आपने कहा कि हमें शिवाजी से सीखने की जरूरत है। नया भारत अपनी गलतियां दोहराने वाला भारत नहीं है। आपने भारतीय अर्थव्यवस्था का ऐतिहासिक विश्लेषण करते हुए कहा कि हमें आर्थिक विकास के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाने की जरूरत है। आपने कहा कि सेवा एवं विनिर्माण क्षेत्र में तेज़ी विकसित भारत के लिए आवश्यक है। आज राष्ट्र लगभग सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है और नए रिकॉर्ड कायम कर रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, अध्यात्म, संस्कृति, खाद्य, महिला सशक्तिकरण आदि सभी क्षेत्रों में भारत नई ऊँचाइयाँ हासिल कर रहा है। प्रौद्योगिकी और ऊर्जा के क्षेत्र में भारत लीडर बनने की क्षमता रखता है। भारत को दूसरे राष्ट्रों की नकल न कर अपना स्वयं का विकास मॉडल बनाने की जरूरत है। आपने कहा कि हमें शोध में आमूल परिवर्तन लाने की जरूरत है। शिक्षा में निवेश अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने में सहायक सिद्ध होगा। हमें लीडरशिप के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है और दिल्ली विश्वविद्यालय इसमें अपना अहम योगदान दे सकता है।

विषय प्रवर्तन करते हुए मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति के अध्यक्ष प्रो. निरंजन कुमार ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विज़न विकसित भारत@2047 अभियान को लेकर अत्यंत सजग है। आपने कहा कि भविष्य का भारत केवल आर्थिक नहीं बल्कि नैतिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास पर आधारित होगा।

अंत में प्रो. मनोज सिन्हा, प्राचार्य, आर्यभट्ट महाविद्यालय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शोभना सिन्हा ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी उच्च पदाधिकारियों सहित डीन, विभागाध्यक्ष, प्राचार्य, संकाय सदस्य, शिक्षक, शोधार्थी, छात्र और समाज के अन्य लोग शामिल रहे।

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