सूर्या फ़ाउण्डेशन...

सूर्या फ़ाउण्डेशन ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर जागरूकता लाने के लिए  को एक सेमिनार आयोजित किया

कुलवंत कौर, संवाददाता 

नई दिल्ली। एन.सी.ई.आर.टी. के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अनेक पुस्तकों के सुप्रसिद्ध लेखक डॉ. एच.एल. शर्मा ने 27.01.2024 को हुऐ सेमिनार में आए हुए अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए बताया कि पद्मश्री जयप्रकाश अग्रवाल जी छोटे बच्चों के बस्ते का बोझ और उनके माथे पर चिंता की रेखाओं को बार-बार देखकर द्रवित हो जाते थे। इसके समाधान के लिए उन्होंने शिक्षाविदों की एक बैठक में बच्चों के बस्ते का बोझ एवं मानसिक तनाव कम करने के लिए एक कक्षा-एक किताब परियोजना के तहत कक्षा-एक से पाँच तक पुस्तकों की रचना करने का प्रस्ताव रखा। सभी शिक्षाविदों एवं विषय विशेषज्ञों प्रो. चन्द्रभूषण, श्री गंगादत्त शर्मा श्री प्रभाकर द्विवेदी, श्री शांतिस्वरूप रस्तोगी, श्री टी. आर. गुप्ता, डॉ. गुज्जरमल्ल वर्मा, प्रो. डी. पी. नैयर आदि ने प्रो. एच. एल. शर्मा के संयोजन में सूर्य भारती पुस्तकों की रचना की। इन पुस्तकों को अब एनईपी- 2020 के अनुरूप संशोधित किया जा चुका है। इन पुस्तकों का उपयोग करने के पश्चात् विद्या भारती, सनातन धर्म शिक्षा समिति आदि शिक्षा संस्थानों ने मुक्त कंठ से इनकी प्रशंसा करते हुए अपना फ़ीडबैक दिया है।

सूर्य भारती पुस्तकों में भारत की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति, सभ्यता और स्वस्थ परंपराओं का परिचय रोचक ढंग से कथा, नाटक, पहेली, संवाद आदि के माध्यम से कराया गया है। तर्कपूर्ण वैज्ञानिक सोच, देश के महापुरुषों के प्रति श्रद्धा, पर्यावरण सुरक्षा के प्रति जागरूकता एवं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व जैसे प्रजातांत्रिक मूल्यों को इन पुस्तकों में विशेष महत्व दिया गया है। सीखने के न्यूनतम स्तर, सीखे हुए पर पूर्ण दक्षता, अवधारणात्मक समझ एवं रचनावाद के आधार पर इन पुस्तकों की रचना हुई है।

ज्ञान की समग्रता को अनुभव करते हुए सभी विषयों का समेकन किया गया है। ये पुस्तकें बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक एवं अभिभावकों तथा प्रबंधकों आदि के लिए भी उपयोगी हैं। ये पुस्तकें लगभग  300 से अधिक विद्यालयों, 400 से अधिक संस्कार केन्द्रों, एकल विद्यालयों एवं सामाजिक संस्थाओं में पढ़ाई जा रही हैं। उन्होंने बताया कि सूर्य भारती पुस्तकों की रचना मिनिमम लेवल ऑफ लर्निग, मास्टरी लर्निंग, कान्सेप्ट मैपिंग एवं रचनावाद इन चार आधारभूत सिद्धान्तों पर हुई है।

मुख्य वक्ता के रूप में एन सी ई आर टी में एलीमेंटरी एजुकेशन विभाग की अध्यक्षा प्रो. सुनीति सेनवाल ने कहा कि बच्चों पर पुस्तकों का अत्यधिक बोझ डालकर कुछ स्कूल उनके साथ अन्याय कर रहे हैं। फाउण्डेशन स्टेज (नर्सरी से कक्षा -2) के बच्चों पर बस्ते का बोझ बढ़ाकर उनका सर्वांगीण विकास नहीं किया जा सकता। एन ई पी-2020 में मल्टी डिसिप्लिनरिटी और होलिस्टिक एजुकेशन की कल्पना की गई है क्योंकि ज्ञान-प्राप्ति की प्रक्रिया सदैव होलिस्टिक(समग्र) होती है। समग्र विकास की अवधारणा पंचकोशीय विकास के रूप में हमारे वैदिक साहित्य में मिलती है। वर्तमान विश्व में भी लगभग सभी देशों में बच्चों के समग्र विकास पर जोर दिया जा रहा है। एन ई पी -2020 की अनेक विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए अन्त में उन्होंने अधीति, बोध, अभ्यास, प्रयोग एवं प्रसार रूप पंचपदी शिक्षा प्रणाली पर जोर देते हुए कहा कि हमें शिक्षा पद्धति को और अधिक पारदर्शी, सक्षम एवं सुलभ बनाना चाहिए। इस दिशा में सरकारी और निजी शिक्षा संस्थानों को सामंजस्य से काम करना चाहिए।

मुख्य अतिथि एवं इस्कान टेम्पल पंजाबी बाग के प्रमुख पूज्य संत मुरली कृष्ण दास ने प्राचीन भारत की गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा आध्यात्मिक एवं मूल्यपरक होने के साथ-साथ छात्रों को अर्थोपार्जन के योग्य बनाने वाली होना चाहिए। पितामह भीष्म की भाँति व्यक्ति को आजीवन कुछ न कुछ श्रेष्ठ विद्या सीखते और सिखाते रहना चाहिए। इस अवसर पर दिल्ली एनसीआर के प्राईवेट स्कूलो के चैयरमैन , प्रधानाचार्य, शिक्षक और सूर्या फाउण्डेशन के कार्यकर्त्ता शामिल रहे है।

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