माईक्रो, स्मॉल और मीडियम...

माईक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राईज़ेस (एमएसएमईज़) भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं

हर्षवर्धन लुनिया, संस्थापक एवं सीईओ, लेंडिंगकार्ट

बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार 

नई दिल्ली। हर क्षेत्र में हो रहे डिजिटाईज़ेशन ने हमारे व्यवहार करने, सीखने, काम करने, और जीवन के तरीके में परिवर्तन ला दिया है। सुबह डिजिटल अलार्म घड़ी की आवाज सुनकर सोकर उठने के बाद पूरे दिन डिजिटल माध्यम से काम करते हुए, सब्जी वाले भैया का इंतजार न कर ऑनलाईन डिजिटल माध्यम से सब्जी और ग्रोसरी खरीदने, ज़ूम कॉल पर शादियों के समारोहों में शामिल होने और भौतिक कक्षाओं को छोड़कर ऑनलाईन डिजिटल क्लासरूम्स में शिक्षा प्राप्त करने, तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ही अपनी फ्लाईट बुक करने तक हर काम में डिजिटाईज़ेशन ने परिवर्तन ला दिया है। इंटरनेट पर किसी भी जानकारी का भंडार बहुत आसानी से उपलब्ध हो जाता है, और हम अपनी उंगलियों पर असीमित ज्ञान का लाभ उठा सकते हैं।

पूरी दुनिया, खासकर महामारी के दौर के बाद, और ज्यादा कनेक्टेड हो चुकी है। डिजिटल एडॉप्शन ने बिज़नेसेज़ के काम करने का तरीका बदल दिया है, और उनकी वृद्धि के नए मार्गों का सृजन किया है, फिर चाहे वह पेमेंट्स, लेंडिंग, शिक्षा बीमा आदि में हो, या फिर किसी अन्य क्षेत्र में। भारतीय एमएसएमई को अपने ऑपरेशंस को डिजिटाईज़ करना एक और कारण से जरूरी है, चह है, इसके द्वारा उनकी उत्पादकता में वृद्धि होने की क्षमता। संगठनों को अपने संसाधनों को अनुकूलित करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से उनकी लागत बढ़ती है, और उनकी एफिशियंसी में कमी आती है।

माईक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राईज़ (एमएसएमई) भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो देश के जीडीपी में 30 प्रतिशत का योगदान और 110 मिलियन से ज्यादा लोगों को रोजगार देती हैं। इसलिए रोजगार प्रदान करने में उनका कृषि के बाद दूसरा स्थान आता है, जो देश के निर्यात में 40 प्रतिशत का योगदान देते हैं। अपने दैनिक कार्यों, जैसे इन्वेंटरी, सप्लाई चेन और फाईनेंसेज़ का प्रबंधन करने के लिए डिजिटल टेक्नॉलॉजी का उपयोग कर एमएसएमई अपने ऑपरेशंस को स्ट्रीमलाईन कर सकते हैं, वेस्ट को कम कर सकते हैं, और उत्पादन में तेजी ला सकते हैं। इस प्रकार वो अपनी बचत बढ़ाकर ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं।

इनोवेशन वृद्धि, प्रतिस्पर्धात्मकता लाने और अप्रत्याशित परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसा कि कोविड-19 की महामारी के दौरान देखने को मिला, जब लॉकडाऊन लगने से गतिविधियों पर विराम लग गया। उस समय जो बिज़नेस डिजिटाईज़ेशन को अपना चुके थे, उन्हें डिजिटाईज़ेशन न अपनाने वाले बिज़नेसेज़ के मुकाबले अपना अस्तित्व बनाए रखने का बेहतर अवसर मिला। उभरती हुई टेक्नॉलॉजीज़ का उपयोग करके ये उद्यम अत्याधुनिक उत्पाद व सेवाओं का विकास कर सकते हैं, और ग्राहकों की तेजी से बदलती मांग के अनुरूप भारतीय एमएसएमईज़ के बीच इनोवेशन की संस्कृति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

डिजिटाईज़ेशन का एक और महत्वपूर्ण लाभ है, एमएसएमईज़ के बीच वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता। कई छोटे बिज़नेसेज़ के लिए औपचारिक क्रेडिट लंबे समय से एक समस्या बना हुआ था। आज कई डिजिटल लेंडिंग प्लेटफॉर्म्स वंचित सेगमेंट को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं, और इनोवेटिव फाईनेंशल समाधान प्रदान कर रहे हैं, जिनसे एमएसएमई को आसानी से क्रेडिट मिल पा रहा है।

पूंजी की इस उपलब्धता से पारंपरिक चैनलों और कर्जदाताओं से पूंजी न मिल पाने की एमएसएमई की एक बड़ी समस्या दूर हो गई है, जिससे उन्हें वृद्धि करने, अपनी विस्तार योजनाओं को आगे बढ़ाने, और बाजार के नए अवसरों का लाभ उठाने में मदद मिली है।

साथ ही मैंने सालों से देखा है कि भारत में एमएसएमईज़ की एक बड़ी समस्या बाजार की सीमित पहुँच है। पारंपरिक रूप से ये उद्यम क्षेत्रीय सीमाओं में बंधे रहे हैं, जिससे वृद्धि करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। लेकिन इंटरनेट के विकास और स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग के साथ डिजिटाईज़ेशन एक सेतु बन गया है, जो एमएसएमईज़ को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ रहा है।

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और ऑनलाईन मार्केटप्लेसेज़ का उपयोग कर वो अपने उत्पादों और सेवाओं का प्रचार पूरी दुनिया में कर सकते हैं, और खुद को एक ग्लोबल कंपनी के रूप में स्थापित कर सकते हैं। इससे उनके लिए अवसरों के द्वार खुल गए हैं, जिनका लाभ उठाकर वो विकास करते हुए देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान दे सकते हैं।

इसके अलावा, डिजिटाईज़ेशन व्यापारिक कार्यों में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देता है। डिजिटल रिकॉर्ड-कीपिंग और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर एमएसएमई रियल टाईम में अपनी परफॉर्मेंस को ट्रैक कर उसका विश्लेषण कर सकते हैं। इस पारदर्शिता से ग्राहकों, सप्लायर्स, और निवेशकों में विश्वास स्थापित होता है, और दीर्घकालिक व्यापारिक संबंधों का विकास होता है।

हालाँकि, डिजिटाईज़ेशन अपनाने के साथ-साथ इसके द्वारा उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इनमें साईबर सुरक्षा और डेटा की गोपनीयता में सेंध शामिल हैं, जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसलिए एमएसएमईज़ को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए ज्ञान और संसाधनों से युक्त होना जरूरी है। संक्षेप में भारतीय एमएसएमईज़ के लिए डिजिटाईज़ेशन बहुत विशाल संभावनाएं लेकर आया है। डिजिटाईज़ेशन को अपनाकर ये उद्यम अपनी एफिशियंसी बढ़ा सकते हैं, इनोवेशन ला सकते हैं, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे सकते हैं, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ा सकते हैं।

हमारे देश के लिए संगठित होना और नीतिगत पहलों, कौशल विकास के कार्यक्रमों, एवं वित्तीय प्रोत्साहनों की मदद से एमएसएमईज़ के डिजिटल परिवर्तन को बढ़ाने में सहयोग देना बहुत जरूरी है। ऐसा करके, हम उन्हें क्षमतावान बनाकर भारतीय अर्थव्यवस्था के एक उज्जवल और डिजिटल रूप से सशक्त भविष्य का मार्ग तैयार कर सकते हैं।

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