भारत में वृद्धावस्था...

भारत में वृद्धावस्था अभिशाप बन गई

एस आर अब्रॉल, वरिष्ठ स्तंभकार

नई दिल्ली। 21वीं सदी को संयुक्त परिवार की समाप्ति की सदी के रूप में माना जा रहा है। कहीं भी संयुक्त परिवार दिखाई नहीं देते चाहे वे गांव हो या शहर। आज की युवा पीढ़ी एकल परिवार की धारणा से खुश है। एकल परिवार बुजुर्गों के लिए त्रासदी के रूप में आता है। परिवार के हर सदस्य का कर्तव्य बनता है कि वह अपने बुजुर्गों की देखभाल करें। बुजुर्गों के प्रति सम्मानजनक परिवेश बनाना सरकार और समाज की संयुक्त जिम्मेदारी है। हमारे बुजुर्ग परिवार समाज और देश के लिए अमूल्य धरोहर हैं। मानव जीवन में बुजुर्गों की भूमिका हमेशा से रचनात्मक और प्रगतिवादी रही है।

भारत में बुजुर्गों की आबादी में हिस्सा 15% के ऊपर है और लगातार बढ़ता रहेगा। जापान में बुजुर्गों की संख्या लगभग 30%, इटली में 25%, फिनलैंड में 24%, पुर्तगाल और ग्रीस में 21% है। दुनिया में जापान ही एक ऐसा देश है जहां बुजुर्गों के लिए एक अलग से मिनिस्ट्री ऑफ लोनलीनेस है। जापान की 10% से अधिक आबादी 80 या उससे अधिक उम्र के बुजुर्गों की है।

भारत में 50% से अधिक बुजुर्गों में खराब स्वास्थ्य, अवसाद और गरीबी देखने को मिलती है। वृद्ध व्यक्ति सामाजिक और सरकारी अवहेलना के दंश को सहने के लिए मजबूर होते हैं।

बुढ़ापा एक सामाजिक कलंक बनता जा रहा है। बुजुर्गों के लिए संवेदनाहीन शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अवकाश प्राप्ति, विधवा या विदुर, अलगाव सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी , पादेन शक्ति में कमी, नाते रिश्तेदारों में सामाजिक सहारे की कमी , पर्याप्त पारिवारिक समर्थन की कमी बुढ़ापे को पीड़ा दायक बना देती है।

भारतीय समाज में बुजुर्गों की पारंपरिक रूप से उच्च सामाजिक मान मर्यादा की परंपरा है। शादी विवाह आदि कार्यों में भी उनकी राय ली जाती है। परंतु आजकल प्रेम विवाह का चलन हो गया है। इससे वृद्धों को कोई पूछता नहीं है । समाज के आधुनिकीकरण के कारण समाज की परिस्थितियां बदल रही हैं। युवा अपने जीवन संघर्ष के चलते शहरों को पलायन कर रहे हैं। इसके कारण परिवार के बुजुर्ग अलग थलग पड़ रहे हैं। युवाओं को शिक्षा या जीविका के लिए शहरों में पलायन बुजुर्गों को बच्चों से मिलने वाले भावनात्मक सहारे से वंचित कर रहा है। पीढ़ीगत वैचारिक अंतर भी आपसी संबंधों में खटास पैदा कर रहे हैं। भारत में लोग अपना सब कुछ बच्चों पर न्योछावर कर देते हैं। जब एक दिन वही बच्चे बुजुर्गों को त्याग देते हैं तो माता-पिता को कितनी पीड़ा होती होगी।

राज्य और केंद्र सरकारें बुजुर्गों के लिए कुछ खास नहीं कर रही हैं। ढिंढोरा ज्यादा है और काम नगन्य है। अकेले रह रहे बुजुर्गों को कोई नहीं पूछता। संपन्न परिवारों के बुजुर्गों को अहमियत दी जाती है। बुजुर्गों के लिए बनी लाभकारी और कल्याणकारी योजनाएं केवल फाइलों में दबी हैं और सरकारी प्रचार का ढिंढोरा बनती है। पुलिस बुजुर्गों के लिए संवेदना नहीं रखती । पुलिस उनकी शिकायतें नहीं सुनती। गुंडा प्रवृत्ति के लोग उनका जीवन पीड़ा दायक बना देते हैं। उनके घरों के आगे वाहन खड़ा करके आने-जाने का रास्ता बाधित कर दिया जाता है। पड़ोसी घरों में अवैध निर्माण करके बुजुर्गों के घरों की रोशनी और हवा को बाधित करके उनके जीवन के पलों को छीन लेते हैं। निगम और पुलिस विभाग अवैध निर्माण को रोकने में पूरी तरह से असफल हैं । न्यायपालिका ने भी कुछ नहीं किया सिवाय बड़ी-बड़ी बातों के।


Comments