मैचिंग डोनर...

दस लाख में से ऐसा एक ही शख़्स मैचिंग डोनर के तौर पर मिल पाता है : जानकार

बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार 

नई दिल्ली। भारत में ब्लड कैंसर के शिकार लोगों को इलाज के रूप में कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन कराने वाले ज़्यादातर मरीज़ों को आसानी से मैचिंग डोनर नहीं मिल पाते हैं. उल्लेखनीय है कि 10 लाख में से एक ही शख़्स ऐसा निकलता है, जो मैचिंग डोनर‌ के तौर पर सामने आकर मरीज़ की मदद कर पाता है. इस ट्रीटमेंट से मरीज़ की हालत में आमूलचूल बदलाव आ सकता है, मगर एक मैचिंग डोनर का मिलना सबसे कठिन काम होता है. अक्सर इसके अभाव में ब्लड कैंसर का शिकार मरीज़ अपना दम तोड़ देते हैं. ऐसे में मेडिकल समुदाय से जुड़े लोगों द्वारा भारत में स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन को लेकर आम जनता में और अधिक जागरुकता फ़ैलाने की आवश्यकता है.

ब्लड कैंसर के ख़िलाफ़ संघर्षरत एक ग़ैर-सरकारी संगठन DKMS BMST फाउंडेशन इंडिया की ओर‌ से वर्लड ब्लड कैंसर डे’ के पहले आयोजित किये गये एक ख़ास कार्यक्रम में जानकारों ने इस मुद्दे को रेखांकित किया. उन्होंने‌ भारत में ब्लड स्टेम‌ सेल डोनेशन को लेकर बढ़ती खाई की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए स्वेच्छा से स्टेम स्टेल‌ डोनेशन की‌ संस्‍कृति को बढ़ावा देने पर ज़ोर‌ दिया. इस‌ ख़ास मौके पर 23 से 33 साल के 6 स्टेम‌ सेल डोनरों ने अपने निजी अनुभवों को साझा किया. इन सभी डोनरों ने लोगों से भावनात्मक रूप‌ से अपील करते हुए कहा कि वे सभी उनकी तरह डोनर बनकर‌ डोनरों की संख्या में इज़ाफ़ा करने में अपना अहम योगदान दें और लोगों का जीवन बचाने में सहयोग करें.

ब्लड कैंसर एक ऐसी जानलेवा बीमारी है, जिसका पूरे भारत में हज़ारों की संख्या में लोग शिकार हो रहे हैं. आमतौर पर ऐसे मरीज़ों की जान बचाने के लिए स्टेम सेल ट्रांसप्लांट बेहद आवश्यक हो जाता है, जो ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीज़ों को बचाने की आख़िरी उम्मीद के तौर पर काम आता है. एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि इन मरीज़ों में से महज़ 30% मरीज़ ही ऐसे होते हैं, जिन्हें ट्रांसप्लांट के लिए अपने परिवारों के भीतर ही डोनर मिल जाते हैं. बाक़ी 70% मरीज़ों को बाहरी व मैचिंग प्रोफ़ाइल वाले लोगों पर डोनेशन के लिए निर्भर रहना पड़ता है, जो उन मरीज़ों और उनके परिवार के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप‌ में सामने आता है. एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में हर साल तकरीबन 70,000 लोग ब्लड कैंसर के चलते अपनी जान गंवा देते हैं, जबकि स्टेम सेल डोनरों की संख्या लगभग 0.04% ही है.

नई दिल्ली में राजीव गांधी कैंसर अस्पताल एवं शोध संस्थान में हेमाटोऑन्कोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट के तौर पर कार्यरत डॉ. नरेंद्र अग्रवाल कहते हैं, "भारत में ब्लड कैंसर एक बड़े ख़तरे के रूप में सामने आया है, जिससे बड़ी तादाद में लोगों की ज़िंदगियां प्रभावित हो रहीं हैं. देश भर में हर साल इससे जुड़े लगभग एक लाख मामले सामने आते हैं. ऐसे में इस घातक बीमारी का प्रभावी ढंग से इलाज करना बेहद ज़रूरी है. डोनरों का अभाव एक बड़ी चिंता का विषय है और पूरी तरह से मैच होने वाले डोनरों का अनुपात भी 1/10 लाख है. स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ब्लड कैंसर के इलाज में एक बेहद प्रभावी किस्म का उपाचर के रूप है. 

स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से उपयोग में लाने से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के ज़रिए ब्लड कैंसर का प्रभावी रूप से इलाज किया जा सकता है. इससे काफ़ी सकारात्मक नतीजे देखने को मिले हैं और कई लोगों की ज़िंदगियों को बचाने में भी‌ मदद मिली है. हालांकि उपचार के नतीजे मरीज़ की निजी चारित्रिक विशेषताओं पर‌ निर्भर करते हैं, लेकिन 60%-70% मामलों में ऐसा देखा गया है कि समय रहते मरीज़ों का उपचार करने से उनकी जान बचाने में डॉक्टरों को सफलता मिली है. स्टेम‌ सेल ट्रांसप्लांट उपचार की‌ अत्याधुनिक तकनीक के चलते सफलता का प्रतिशत बढ़कर अब लगभग 80% तक हो गया है. ल्यूकिमिया, लिमफ़ोमा अथवा मल्टिपल मायेलोमा इन सभी सूरत में स्टेम‌ सेल ट्रांसप्लांटेशन मरीज़ों की हालत में सकरात्मक बदलाव लाता है और स्वस्थ ढंग से रक्त संचार व प्रतिरक्षा प्रणाली के पुनर्निर्माण में सहयोग करता है. लोगों में इस संबंध में जागरुकता फ़ैलाने, डोनर की संख्या में इज़ाफ़ा करने और दूसरों की मदद करने‌ के प्रचलन को और बढ़ाने से हम भारत में बड़ी संख्या में ब्लड कैंसर का शिकार होने वाले लोगों की जान को बचा सकते हैं."

डॉ. नरेंद्र अग्रवाल आगे कहते हैं, "एक हेमेटोऑन्कोलॉजिस्ट होने के नाते मैं ब्लड कैंसर के घातक प्रभाव को रोज़ाना अपनी आंखों से देखता हूं. ऐसे में स्टेम‌ सेल ट्रांसप्लांट के ज़रिए अपनी ज़िंदगी बचाने की जद्दोजहद में लगे मरीज़ों की व्याकुलता और उनके दर्द को मैं अच्छी तरह से समझ सकता हूं. हम सबको एकजुट होकर, बदलाव की दिशा में क़दम बढ़ाते हुए इन मरीज़ों की जान बचाने के लिए और भी बड़े प्रयास किये जाने की ज़रूरत है."

DKMS BMST फ़ाउंडेशन इंडिया के सीईओ प्रैट्रिक पॉल एक व्यापक स्टेम सेल डोनर डेटाबेस बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि यह ब्लड कैंसर के मुक़ाबले के लिए बेहद कारगार उपाया है. वे कहते हैं, "भारत में हर पांचवें मिनट में ब्लड कैंसर अथवा थेलेसेमिया/अप्लास्टिक अनेमिया जैसे ब्लड डिस्ऑर्डर के मामले सामने आते हैं. ऐसे में जीवनरक्षक ट्रांसप्लाट के माध्यम से अपनी जान बचाने‌ के लिए संघर्षरत भारतीय मरीज़ों के लिए मैचिंग ब्लड‌ स्टेम‌ डोनरों का मिलना सबसे बड़ी चुनौती साबित होता है. आज की तारीख़ में दुनिया भर में 40 मिलियन यानी 4 करोड़ से ज़्यादा रजिस्टर्ड डोनर हैं, लेकिन भारत में ऐसे पंजीकृत डोनरों की संख्या महज़ 0.5 मिलियन यानी 5 लाख के क़रीब है.”

वे आगे लहते हैं, “देशभर में इस वक्त हज़ारों मरीज़ जीवनरक्षक ट्रांसप्लांट के लिए उचित स्टेम‌ सेल डोनर के इंतज़ार मे हैं. एक सशक्त डेटाबेस बनाने से मरीज़ों व संभावित डोनरों के बीच की खाई को कम करने में ख़ासी मदद मिलेगी. उल्लेखनीय है कि DKMS-BMST ने सिर्फ़ दिल्ली शहर से ही 2500 लोगों को डोनर के तौर पर अपने डेटाबेस में जोड़ लिया है. मगर यह आंकड़ा डोनरों की भारी संकट की ओर भी इशारा करता है. ऐसे में हम तमाम लोगों से गुज़ारिश करते हैं कि लोग डोनर के रूप में आगे आएं और इस नेक मक़सद में अपना योगदान दें क्योंकि हरेक डोनर ब्लड कैंसर से पीड़ित और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट का इंतज़ार कर रहे मरीज़ के लिए उम्मीद की न‌ई किरण साबित होता है"

इस कार्यक्रम के दौरन डोनर अस्मिता ने‌ कहा, "मुझे पहले इस बात का एहसास नहीं था कि स्टेम सेल को डोनेट करने की इस साधारण सी क्रिया से किसी की ज़िंदगी में इस क़दर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. ब्लड कैंसर‌ के एक मरीज़ की ज़िंदगी को इस तरह जीवनदायी उम्मीद से भर देने‌ से मुझे भारी कृतज्ञता का एहसास हो रहा है." इस मौके पर एक अन्य डोनर पारीतोष ने कहा, "एक‌ स्टेम सेल डोनर होने के नाते मुझे अब जाकर इस‌ बात का एहसास हुआ है कि किस बहादुरी और जज़्बे के साथ ब्लड कैंसर के मरीज़ अपनी ज़िंदगी की जंग लड़ते हैं. मुझे इस बात का गर्व है कि उनकी ज़िंदगी बचाने के इस अनोखी मुहिम का मैं भी‌ एक अहम हिस्सा हूं." 


डॉ. नरेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि स्टेम सेल डोनरों की रजिस्ट्री में सबसे बड़ी बाधा है लोगों में इस संबंध में जागरुकता का अभाव. वे कहते हैं, "आम लोगों में स्टेम सेल डोनेशन को लेकर एक बहुत बड़ी भ्रांति भी मौजूद है और वह ये है कि लोगों को लगता है कि यह एक इनवेसिव प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया के दौरान डोनर को काफ़ी दर्द से गुज़रना पड़ता है. ऐसे में लोगों की ग़लतफ़हमी को दूर करने‌ की ज़रूरत है और उन्हें बताने की आवश्यकता है कि ब्लड स्टेम सेल डोनेशन एक अति-साधारण और दर्दरहित प्रक्रिया है. संभावित स्टेम सेल डोनर इस बात से भी काफ़ी आशंकित रहते हैं कि स्टेम सेल डोनेशन से उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा. लोग इस डर की वजह से जीवनरक्षक ट्रांसप्लांट के डोनर के रूप में सामने आने से कतराते हैं. इस संबंध में सही तरह की जानकारी देकर हम लोगों को संभावित डोनर बनने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और ब्लड कैंसर से पीड़ित लोगों को जीवन में एक नई उम्मीद दे सकते हैं."

ग़ौरतलब है कि DKMS BMST फ़ाउंडेशन इंडिया की स्थापना साल 2019 में की गई थी. तब से लेकर अब तक फ़ाउंडेशन ने 80,000 लोगों को डोनर के तौर पर पंजीकृत कर लिया है और 87 मरीज़ों के ट्रांसप्लांट में अपना अहम योगदान‌ दिया है. इससे ब्लड कैंसर के‌ ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने‌ में फ़ाउंडेशन को ख़ासी मदद‌ मिली है. फ़ाउंडेशन का लक्ष्य भारत और दुनिया भर में बड़ी संख्या में डोनरों की रजिस्ट्री कर ब्लड कैंसर के शिकार लोगों की जान बचाना है.

DKMS BMST फ़ाउंडेशन इंडिया के बारे में:

DKMS BMST फ़ाउंडेशन इंडिया एक ग़ैर लाभकारी संगठन है, जो ब्लड कैंसर और थेलेसेमिया व अप्लास्टिक अनेमिया जैसी रक्त से जुड़ी अन्य बीमारियों के ख़िलाफ़ लड़ने में मरीज़ों की सहायता करता है. संगठन‌ मुख्यत: स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन को लेकर लोगों को जागरुक बनाने का कार्य करती है ताक़ि वह भारत व दुनिया भर में ब्लड कैंसर व रक्त से जुड़ी अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीज़ों की मदद करने‌ में अपना‌ भरपूर योगदान दे सके. इसके लिए फ़ाउंडेशन की कोशिश होती है कि वह बड़ी संख्या में संभावित डोनरों की‌ रजिस्ट्री करे. उल्लेखनीय है कि DKMS-BMST दो‌ बड़े व प्रतिष्ठित ग़ैर-लाभकारी संस्थाओं: BMST (बंगलुरू मेडिकल सर्विसेस ट्रस्ट) और दुनिया के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय ब्लड स्टेम सेल डोनर सेंटर के रूप में अपनी पहचान रखने वाले DKMS की साझेदारी से बना एक संगठन‌ है. कृपया अधिक जानकारी के लिए www.dkms-bmst.org वेबसाइट पर जाएं।

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