ग्लोबल वार्मिंग...

ग्लोबल वार्मिंग गहन चिंता की बात है : वरिष्ठ स्तंभकार

कुलवंत कौर, संवाददाता

नई दिल्ली। वरिष्ठ स्तंभकारपूरा, एस आर अब्रॉल ने जानकारी में बताया की विश्व ग्लोबल वार्मिंग से आने वाली त्रासदी से चिंतित है। सभी इस बात से सहमत हैं कि यदि समय रहते कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम ना हुआ तो होने वाले विनाश को कोई नहीं रोक सकता । पृथ्वी की आयु 4.54 बिलियन वर्ष आंकी जा रही है। एक समय था जब पृथ्वी पूरी तरह से हरियाली से आच्छादित थी । विकास की अंधी दौड़ और मानव के असीमित लालच के कारण एक तिहाई वन क्षेत्र समाप्त हो गए हैं। पिछले 50 वर्षों में 70% वनों में रहने वाले जीवो की प्रजातियां समाप्त हो गई हैं । पक्षी, जानवर, कीड़े-मकोड़े सभी इसमें शामिल हैं।

यू एन ओ के अनुसार 75% पृथ्वी का धरातल बंजर हो गया है। समुद्र 30% से अधिक क्षारीय हो गया है । समुद्र प्लास्टिक और रसायन कचरे से भरते जा रहे हैं। कभी आसमान नीला दिखता था लेकिन आज काला स्याह दिखता है। वायुमंडल में प्रदूषण तत्व चादर की तरह फैले हैं। 2022 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन चरम सीमा पर था। कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी को एक मोटी चादर की तरह ढक लेता है जिससे पृथ्वी की उष्णता पृथ्वी पर ही सिमटी रहती है। उष्णता ऊपर अंतरिक्ष में नहीं जा पाती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है। मौसमों में तब्दीली आ जाती है , कभी बाढ़, कभी सूखा, कहीं जलाने वाले लूं के थपेड़े, कहीं जंगलों में लगने वाली आग, स्थिति को और गंभीर बना देती है।

कृषि भूमि कंक्रीट के जंगलों में बदल रही है और गगनचुंबी इमारतें बढ़ती जा रही। बड़े बड़े नगरों में सार्वजनिक भूमिका अतिक्रमण और अवैध निर्माण हो रहा है। भू माफिया सरकारी तंत्र को भ्रष्ट करके बिना किसी रूकावट के अवैध निर्माण कर रहा है। कुछ दिन पहले उत्तराखंड के जोशीमठ में भू माफिया की काली करतूतें सामने आई हैं। जगह-जगह भूमि पर दरारे आ गई। हर कोने में आई दरारों में जीवन को संकट में डाल दिया।

भूमि की भार ग्रहण क्षमता से यदि उस अगर अधिक भार डाल दिया जाए तो नीचे की भूमि में भू धसान होने लगता है और भूमि नीचे को धसने लगती है जिससे भवनों में दरारें आने लगती हैं। यह दरारे दिन प्रतिदिन चौड़ी होती जाती हैं। भूचाल के झटके, तेज हवाएं, आंधी, तूफान, भारी वर्षा क्षेत्र को तबाही के मंजर तक पहुंचा देते हैं। वह बेचारे लोग जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया होता, किसी तरह का अवैध निर्माण नहीं किया होता, वह भी गलत काम करने वालों के गलत कामों का दुष्परिणाम भुगतते हैं। गगनचुंबी इमारतें आंख झपकते जमींदोज हो जाती हैं तथा खंडित होकर मलवा बन जाती हैं।

दिल्ली नगर निगम के दक्षिण जोन के वार्ड संख्या 171 के डीडीए द्वारा निर्मित मकानों की दुर्दशा देखकर रूह कांपने लगती है। मकानों की जर्जर हालत को देखकर कोई भी डर जाएगा। देखने से लगता है यह मकान किसी भी पल ध्वस्त हो जाएंगे। दुख की बात है जिनमें अवैध निर्माण और सार्वजनिक भूमि का अतिक्रमण जोरों पर चल रहा है। भू माफिया की सरकारी तंत्र पर अच्छी पकड़ है। निगम अधिकारीयों ने आंखें मूंद रखी है।  अवैध निर्माण से प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। हवा के बहने का मार्ग अवरूद्ध होता है, हमारा स्वस्थ खराब होता है, मानव शरीर प्लास्टिक या धातु का नहीं बना होता है यह पांच तत्वों से बना होता है जिनसे पृथ्वी बनी होती है।

मृत्यु के पश्चात हमारा शरीर भी पांच तत्वों में खंडित हो होकर पृथ्वी में ही समा जाते है। पृथ्वी को पीड़ा देने से मानव स्वयं पीड़ित होगा। आने वाले समय में जीवो का जीवन ही खतरे में पड़ जाएगा । हमें याद रखना होगा अगर पृथ्वी स्वस्थ है तो जीव स्वस्थ होंगे। सुनामी, समुद्री तूफान, बाढें अनेकों रोगों को जन्म देती हैं। दूषित पानी गुर्दे के रोग का मुख कारण है। गर्मी और धुआं हमारे रोगों से लड़ने की शक्ति को खत्म कर देते हैं। औषधियां भी हमारे रोग का इलाज नहीं कर पाती हैं।

सरकारों को तुष्टीकरण नीति को छोड़कर संतुष्टि करण नीति अपनानी चाहिए । चंद लोगों के वोटों के लिए कानून से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। बिल्डर माफिया पर नकेल कसना चाहिए और उन्हें जेल की सलाखों के पीछे बंद किया जाना चाहिए।


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