दिल्ली उर्दू अकादमी...

दिल्ली उर्दू अकादमी को बेसहारा कराने पर तुली दिल्ली सरकार


बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार 

नई दिल्ली। दिल्ली उर्दू अकादमी की स्थापना वर्ष 1981 हुई थी, जिसका उद्देश्य दिल्ली में उर्दू भाषा के विकास और संवाद को बढ़ाना, देश हित में आपसी भाईचारे को बढाकर दिल्ली के सौहार्द की संस्कृति को बरकरार रखना था। जिसमें निस्वार्थ उर्दू के विद्वानों, कवियों और राजनीतिज्ञों ने सराहनीय योगदान देकर उर्दू को उचित स्थान देने का प्रयास किया गया, परंतु खेद का विषय है कि यहां अन्य विचारो के लोगो अपना अपना उल्लू सीधा करते रहे, वह केवल फोटो खिंचवाने स्टेजों की शोभा बड़ने के लिए बेताब रहते, वहीं ग्रांट के लिए कमीशन के रास्ते एकेडमी वाइस चेयरमैन के आशीर्वाद से कार्यरत किसी तरह  धीरे-धीरे योग्य स्टाफ रिटायर्ड हो गए ।

दिल्ली में जबसे केजरीवाल सरकार आई तबसे 1 साल का कांटेक्ट 3 महीने के लिए सीमित कर दिया, कोरोना कॉल में बजट भी लंबित किया गया, रेगुलर भर्ती का वादा तो दूर कांटेक्ट की बेसहारा कर्मचारी को गत सप्ताह बाहर का रास्ता दिखा दिया गया , यह अन्य संविदा स्टाफ के लिए खतरे की घंटी है ?

सूत्रों से मिली जानकारी है कि यहां हारून व पूनम नामक एक्स कैडर को मूल कैडर में बदलकर पदोन्नति नियमों का न केवल खुला उल्लंघन हुआ बल्कि एग्जीक्यूटिव मेंबर्स को भी गुमराह किया गया। बैक डोर से इस पदोन्नति पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है जिसकी चर्चा कार्यालय में है। ऑटोनॉमस बॉडी का यह अर्थ हरगिज नहीं कि नियमों के उल्लंघन की अनुमति दी जाए , पारदर्शिता जांच हुई तो रिवरशन के साथ साथ एरियर की रिकवरी भी हो सकती हैं।

बताया जा रहा है कि कुलभूषण अरोड़ा की नियुक्ति सरकार के शीर्ष नेतृत्व की रणनीति का हिस्सा है ताकि उर्दू अकैडमी को बर्बाद किया जा सके यही वजह है कि एकेडमी में आयोग मुखोटे थोपे जा रहे हैं। एकेडमी के वाइस चेयरमैन ताज मोहम्मद ,रटी रटाई बोली बोल रहे हैं की बजट की कमी नहीं है , यदि बजट की कमी नहीं है तो लंबित मुसवविदे और स्वीकृत मुसवविदो को ग्रांड में देरी क्यों ? संविदा कर्मचारियों का शोषण क्यों, अकादमी की एग्जीक्यूटिव बॉडी ने आज तक कोई भी प्रस्ताव पारित करके उपराज्यपाल को क्यों  नहीं भेजा, जिस काम को नहीं करना है उपराज्यपाल कोअड़ंगा लगाने आरोप लगाकर मुख्य मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए ! 

वहीं दारा शिकोहा लाइब्रेरी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के सहारे चल रही है उसको पदोन्नत करने के लिए क्या षड्यंत्र रचे जा रहे हैं , सुलेखारी का काम समाप्त कर दिया गया, उर्दू अनुवादक का पद समाप्त , अधिकतर रिक्त पदों को अयोग्य थोपे गए अधिकारियों, चापलूसियो,वाइस चेयरमैनो के हाथों एबॉलिश्ड कराने का षड्यंत्र रचा जा रहा है , सत्य यह है कि उर्दू अकादमी को बर्बाद करने पर तुली है दिल्ली सरकार ! वही, चाटुकार , अयोग्य उर्दू एकेडमी के मोटे अवार्ड के लिए फर्जी कहानियां करने पर तुले हैं जिससे योग्य हकदारों, साहित्यकारों , कवियों का मनोबल टूट रहा है।

ज्ञात हो कि दिल्ली में सिंधी अकैडमी हो या उर्दू अकैडमी दोनों ही खुद मुख्तार इदारे थे, किंतु जब मोहम्मद अहसन आर्ट कल्चर , लैंग्वेज के सेक्रेटरी थे उन्हीं के कार्यकाल में उर्दू एकेडमी के अधिकारो मैं घुन लगने की चर्चा है। यह कहां तक सत्य है इस पर मंथन करने की आवश्यकता है जबकि हिंदी, पंजाबी  और सिंधी अकैडमी सुचारू रूप से अपना अपना काम कर रही है। हालांकि सिंधी अकैडमी की स्थापना दिल्ली सरकार का सराहनीय कदम है।

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