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पंजाबी को स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में खत्म नहीं होने देंगे : जीके

बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार 

नई दिल्ली। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के द्वारा शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के दौरान कक्षा छह से बारह तक के बच्चों से छठे विषय के रूप में उनकी मातृभाषा पढ़ने का अधिकार छीनने का जागो पार्टी ने दावा किया है। जागो पार्टी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने सीबीएसई द्वारा 2 जनवरी 2023 को जारी सर्कुलर का हवाला देते हुए अन्य क्षेत्रीय भाषा विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस फैसले का जल्द विरोध करने की घोषणा की है। जीके ने कहा कि सीबीएसई ने भारत सरकार की नई शिक्षा नीति की आड़ में अकादमिक वर्ष 2023-24 के लिए हिंदी को छोड़कर अन्य भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को कौशल पाठ्यक्रम के नाम पर खत्म करने का सर्कुलर जारी किया है।

इस सर्कुलर के जरिए तमाम भाषा विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि सभी क्षेत्रीय भाषाओं के अध्ययन और रोजगार का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। इस सर्कुलर के लागू होने के बाद सीबीएसई से मान्यता प्राप्त अधिकांश स्कूलों में पंजाबी, उर्दू, बंगाली, संस्कृत, तमिल, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के योग्य शिक्षकों की आवश्यकता नगण्य हो जाएगी और कॉलेजों में भी इन भाषाओं को पढ़ने के इच्छुक विधार्थियों को ढूंढना मुश्किल हो जाएगा।जिसका सीधा असर विश्वविद्यालयों में इन भाषाओं के विभाग के खत्म होने पर भी पड़ सकता है। क्योंकि सीबीएसई ने अब कौशल पाठ्यक्रम को छठे विषय के रूप में मान्यता दे दी है और इन भाषाओं को सातवें विषय के रूप में मान्यता दी है।

जीके ने कहा कि कक्षा उत्तीर्ण करने के लिए मुख्य 6 विषयों में से टॉप 5 विषयों में कौशल पाठ्यक्रम को शामिल करके सीबीएसई ने विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित, हिंदी और अंग्रेजी विषयों को समान वजन दें दिया है। जिसके बाद अब कोई भी छात्र सातवें विषय का अतिरिक्त बोझ उठाने को तैयार नहीं होगा।जिससे इन भाषाओं मे सृजित होने वाले रोजगार पर भी संकट आ जाएगा। कुछ साल पहले दिल्ली सरकार ने भी इसी तरह मातृभाषाओं को दरकिनार करके स्कूलों में कौशल पाठ्यक्रम लागू करने की घोषणा की थी। तब भी हमने इस तुगलकी फरमान का विरोध किया था। जिसके बाद दिल्ली सरकार ने यह फैसला वापस ले लिया था। लेकिन अब सीबीएसई ने भी इसी तर्ज पर मातृभाषा के अस्तित्व को खत्म करने का लक्ष्य रखा है।

इसलिए हम अपनी मातृभाषा पंजाबी की संस्कृति, विरासत और रोजगार को बचाने के लिए कड़ा संघर्ष करने को तैयार हैं। स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पंजाबी को खत्म करने की इस साजिश को हम किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देंगे। क्योंकि कानूनी और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में अपनी भाषा की रक्षा के लिए हमारे पास कई तर्क हैं। साथ ही सीबीएसई के इस सर्कुलर के कारण दिल्ली में त्रिभाषा फॉर्मूले की भी अनदेखी की जा रही है।

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