पेड़-पौधों का ...

पेड़-पौधों का नाश, मानवता का विनाश



वृक्ष हमारे मित्र हैं। उनकी रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। धरती पर वृक्ष नहीं रहेंगे तो बाकी और किसी के बचने की कल्पना नहीं की जा सकती। वृक्ष ही हमारे सुख-दुख के साथी हैं। वृक्ष ही हमारे स्वास्थ्य को सजाने-संवरने का काम करते हैं। धरती के पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचकर मानव और धरती की सेहत पर भी अब ग्रहण लग गया है। प्राकृतिक वनों-जंगलों को काटकर उद्योग धंधों का विस्तार किया जा रहा है। शहर बसाये जा रहे हैं। अनेक आर्थिक योजनाओं के कारण हमारे गांव धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो कर नगरों में विलीन होते जा रहे हैं। इससे गांव और शहरों का संतुलन बिगड़ गया है। मुक्त बहने वाली जल धाराओं पर बड़े-बड़े बांध हो जाने से न केवल जंगलों और वनों पर बल्कि वन्य प्राणियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आज हालत यह है कि मानव हर तरह से पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाकर यह समझता है कि वह बच पाएगा तो यह उसकी भूल है। रथावर या जंगल, दृश्य और अदृश्य, सभी जीवों का अस्तित्व स्वीकारने वाला ही पर्यावरण और मानव जाति की रक्षा के बारे में सोच सकता है। जीव और अजीव की सृष्टि में जो अजीव तत्व हैं अर्थात मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति, उन सभी में भी जीव है। अतः इनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो इनके अस्तित्व को अस्वीकार करने का मतलब है अपने अस्तित्व को अस्वीकार करना। 


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