बीमारियों की जड़...

बीमारियों की जड़ है आरक्षण 



संदीप लाम्बा 


मेरा स्पष्ट मानना है कि आरक्षण, कर्ज माफी बिजली बिल माफी, रंगीन टी वी, मंगल सूत्रा, एक रुपए सदोष लाम् किलो चावल जैसी तमाम नौटंकी सिरे से वोटर को रिश्वत देने की तरकीबें हैं। लोकतंत्र के मुंह पर कलंक है, यह सब कोढ़ है हमारे राजनीतिक समाज का।


सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग को मिल-जुल कर इस कोढ़ से जनता को फुर्सत दिलानी चाहिए क्योंकि जनता और राजनीतिक दल तो इस बीमारी में गहरे धंसते जा रहे हैं। आरक्षण की बैसाखी सौ प्रतिशत खत्म करने की जरूरत है। हजार बीमारियों की जड़ है यह आरक्षण पर दिक्कत यह है कि हम पोलियो को जड़ से भले खत्म कर दें लेकिन आरक्षण की बैसाखी छोड़ने के लिए किसी सूरत तैयार नहीं हैं। जातीय अस्मिता का प्रश्न बन गया हैआरक्षण। चुनावी ब्लैकमेलिंग का प्रमुख हथियार बन गया है आरक्षण। हमारा पोलिटिकल सिस्टम स्वाभिमान नहीं, भीख मांगना सिखाता है। अपने पांव पर नहीं, बैसाखी पर चलना सिखाता है। दुर्भाग्य यह कि जनता जनार्दन को भी यह बैसाखी बहुत सुहाती है। अब सामाजिक न्याय के नाम पर प्रतिभा को ठोकर मारने वालों की कतार में दस प्रतिशत सवर्णो को भी शुमार करने की कवायद जारी है।


भाजपाई चुनाव की बिसात पर सवर्णो का भांगड़ा देखना दिलचस्प है। दिलचस्प ही है सामाजिक न्याय की आड़ में भ्रष्ट राजनीतिकों का विधवा विलाप पर खुल्लमखुल्ला सवर्णो की आंख में कोई गड़ना भी नहीं चाहता। भाजपा इस कसरत में कामयाब हो या न हो पर चुनावी मास्टरस्ट्रोक तो मार दिया है। वह जो कहते हैं ठहरे जल में कंकड़ फेंकना। अब यह सवर्ण आरक्षण का मुद्दा दबने वाला नहीं है। अगली सरकार चाहे जिसकी भी बने, उस के गले यह घंटी पहले ही से बंध गई है। जैसे भी हो, यह मांग पूरी तो करनी ही पड़ेगी।


मोदी ने अपने कहे मुताबिक अब खुल कर राजनीति शुरू कर दी है मिशेल आ चुका है, माल्या आने वाला है। बताया जा रहा है कि मोदी के पिटारे में अभी मिशेल, माल्या और आरक्षण के अलावा और भी कई सांप और टोटके हैं। अगले दस, पंद्रह दिनों में आहिस्ता-आहिस्ता सब सामने आ जाएंगे। बस देखते जाइए।यह राजनीति और चुनाव जो न करवाए। अभी तो भाजपा को छोड़ सभी के होश उड़ गए हैं। एस सी एस टी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद में पलटने का जो घाव तीन प्रदेशों में सत्ता गंवाने में भाजपा ने सहा है, इस घाव को भरने के लिए सवर्णो को आरक्षण जैसी एंटीबायटिक दवा इस्तेमाल करना भाजपा की विवशता है, खुशी नहीं। इस बात को भी बड़े-बड़े अक्षरों में नोट कर लीजिए।


Comments