अहिल्याबाई होलकर का उद्देश्य था नष्ट हो चुके राष्ट्र के सम्मान एवं गौरव को स्थापित करना
राज कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली। पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई की जयंती के 300 वें वर्ष के पावन अवसर पर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करने तथा वर्तमान एवं भावी पीढ़ी तक उनके प्रेरणादायी कृतित्व को पहुचाने के लिए गठित पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रिशती समारोह समिति, दिल्ली द्वारा गुरुवार 14 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि हमारा देश सातवीं शताब्दी से भयंकर संकट में आ गया। वही 11वीं सदी से भयंकर आतंक का काल प्रारंभ हो गया। कोई मंदिर, कोई स्थान, माता – बहने कोई भी सुरक्षित नहीं रहा। शायद ही कोई देश इस प्रकार 700 वर्षों तक अपने देश की संस्कृति पर हमले का सामना कर पाया हो। ऐसे में एक छोटे से स्थान से एक बालक खड़ा होता है जिसका नाम है शिवाजी महाराज। बहु चतुराई से उसने एक छोटा साम्राज्य स्थापित किया। 1674 में हिंदू पादशाही की स्थापना हुई। 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई। इस छोटे से काल खंड में ही उन्होंने जनमानस में गजब की प्रेरणा भर दी। उनकी मृत्यु के 26 साल बाद तक औरंगजेब उस छोटे से साम्राज्य लड़ता रहा और अंत में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ही उसकी मृत्यु हो गई।
श्री कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि इंदौर का होलकर महान हिंदवी स्वराज का एक हिस्सा था। बड़े साम्राज्य को चलाने के लिए कई केंद्र बनाए गए उनमें से एक था इंदौर। शिवाजी महाराज कि तरह ही अहिल्याबाई होलकर का उद्देश्य था नष्ट हो चुके राष्ट्र के सम्मान एवं गौरव को स्थापित करना। राज्य सैकडो हो सकते हैं पर राष्ट्र एक है। भारत राज्य नहीं, भारत एक राष्ट्र है।
अहिल्याबाई को समझ में आया कि 700 वर्षों में राष्ट्र बोध नष्ट हुआ है। स्व की भावना कम हुई है। इस राष्ट्र बोध को पुनः स्थापित करने के लिए उन्होंने अपनी निजी कोष से 200 स्थानों पर मंदिर, घाट तथा धार्मिक स्थान इत्यादि का निर्माण कराया। यह राज्य दृष्टि नहीं यह राष्ट्रीय दृष्टि है। राज्य महान राष्ट्र का एक हिस्सा है। इसलिए उन्होंने राष्ट्र के श्रद्धा के स्थानों का पुनः निर्माण किया।
इतिहास में कोई-कोई ऐसा शासक होता है जिसके बारे में सबके पास प्रशंसा ही होता है। अहिल्याबाई ऐसी ही एक शासक थी। भारतीय नारी की प्रेरणा है जीजाबाई और इस श्रृंखला की अगली कड़ी थी अहिल्याबाई। जो दुख जीजाबाई के मन में था वही अहिल्याबाई के मन में था। जो संकल्प शिवाजी महाराज के मन में था वही अहिल्याबाई के मन में था।
सभा को संबोधित करते हुए कार्यक्रम की अध्यक्षा पूर्व आईपीएस अधिकारी श्रीमती विमला मेहरा जी ने कहा कि हमें अहिल्या माता से सीखना है और उनके दिखाए मार्ग पर चल कर अपने देश एवं समाज को आगे बढ़ाना है।
पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रिशती समारोह समिति, दिल्ली के सचिव डॉ. अशोक त्यागी ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया तथा समिति की अध्यक्षा डॉ. उपासना अरोड़ा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रिशती समारोह समिति के कार्याध्यक्ष श्री उदय राजे होलकर, पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रिशती समारोह समिति, दिल्ली के संरक्षक दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, लेखक श्री मधुसुदन होलकर , कार्यक्रम की अध्यक्ष श्रीमती विमला कुमारी ( Retd आईपीएस 1978 batch , पूर्व महानिदेशक - जेल ( दिल्ली)तथा समिति के माननीय सदस्यों की गरिमामय उपस्थिति रही।
इस अवसर पर अहिल्याबाई होलकर जी पर दो पुस्तकों का भी विमोचन किया गया। मंचासीन अतिथियों का स्वागत तुलसी का पौधा एवं लोकमाता अहिल्याबाई द्वारा स्थापित महेश्वरी साड़ी द्वारा किया गया। इस अवसर पर अहिल्याबाई जी पर एकल गीत एवं छात्रा आइसा द्वारा एकल नाट्य की प्रस्तुति की गई। कार्यक्रम स्थल पर पुस्तक तथा लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन पर बनी पेंटिंग की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।
इस भव्य कार्यक्रम में समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के 1000 से ज्यादा प्रबुद्ध जन उपस्थित थे। जिसमे 300 से ज़्यादा बहने थी।
लोकमाता अहिल्याबाई होलकर भारतवर्ष की एक महान शासिका थीं, जिन्हें न्यायप्रियता, कुशल प्रशासन और सनातन के पुनर्जागरण के लिए किए गए कार्यों के कारण जाना जाता है । उनका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी में हुआ था।
31 मई, 2024 से लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का 300वाँ जन्मवर्ष प्रारंभ हुआ है। उनका जीवन भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम पर्व है। ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले सामान्य परिवार की बालिका से एक असाधारण शासनकर्ता तक की उनकी जीवनयात्रा आज भी प्रेरणा का महान स्रोत है। वे कर्तृत्व, सादगी, धर्म के प्रति समर्पण, प्रशासनिक कुशलता, दूरदृष्टि एवं उज्ज्वल चारित्र्य का अद्वितीय आदर्श थीं। उनके दिखाये गए सादगी, चारित्र्य, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के मार्ग पर अग्रसर होना ही उन्हें सच्ची श्रध्दांजलि होगी।
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