राष्ट्रीय शिक्षा नीति...

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 और बच्चों के सर्वांगीण विकास पर सेमिनार

कुलवंत कौर, संवाददाता 

नई दिल्ली। सूर्या फाउण्डेशन के शैक्षिक विंग स्कूल भारती आर्गेनाइजेशन द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति: 2020 एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास पर एक सेमिनार का आयोजन सूर्या फाउण्डेशन के केन्द्रीय कार्यालय पश्चिमी विहार नई दिल्ली किया गया। सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान से विद्वान् संन्यासी पूज्य स्वामी तेजोमयानन्द जी महाराज, मुख्य वक्ता के रूप में गुरुगोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से असोशिएट प्रोफेसर डॉ अंजली शौकीन एवं इस्कॉन पंजाबी बाग से जगत बन्धु जयदेव दास जी, स्पिरिचुअल रीजनरेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया और नोएडा से ध्यान प्रशिक्षक गौरव ठाकुर जी वक्ता के रूप में उपस्थित थे।

सभी वक्ताओं, अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए प्रो एचएल शर्मा ने बताया कि एसबीओ द्वारा 'एक कक्षा एक किताब' परियोजना के तहत बच्चों के बस्ते का बोझ, और मानसिक तनाव को कम करने के लिए एनईपी-2020 और एनसीएफ-2023 के अनुरूप सूर्य भारती पुस्तकों की रचना की गई है। पुस्तकों की पाठ्य विषय वस्तु लर्निंग आउटकम्स, कम्पीटेन्सीज, और करिक्युलर गोल्स के अनुरूप है।

सेमिनार के मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए डॉ.अंजली शौकीन ने एनईपी-2O20 के मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि शिक्षा नीति में बच्चों के समग्र विकास को आधार बनाया गया है, अतः एक्स्ट्रा-करिक्युलर और को-करीक्युलर के स्थान पर बच्चों के विकास संबंधी सभी गतिविधियों को करिक्युलर-शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग माना गया है। उन्होंने बताया कि इस पॉलिसी का मुख्य फोकस उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करना है जिससे देश वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बन सके। शिक्षण-प्रक्रिया का केन्द्र शिक्षक है। शैक्षिक विकास के लिए शिक्षक को सर्वांग पूर्ण व्यक्तित्व वाला होना चाहिए। इसके लिए प्राइमरी, मिडल, सेकेन्डरी, सी. सेकेन्डरी के लिए अलग-अलग विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था का निर्देश एनईपी-2020 में किया गया है। अन्त में उन्होंने शिक्षा के 5 पिलर्स एसेस ,क्वालिटी, इक्यूलिटी,अफोर्डेबल, अकाउंटबिलिटी की चर्चा करते हुए कहा कि इनके द्वारा ही शिक्षा सर्व समावेशी बनेगी, सब लोगों का भला होगा, सभी शिक्षित होंगे और देश पुनः विश्वगुरु बनेगा।

स्वामी तेजोमयानन्द ने शिक्षा में आध्यात्मिक मूल्यों को साम्मिलित करने पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा व्यक्ति निर्माण, चरित्र निर्माण और राष्ट्रनिर्माण करने वाली होनी चाहिए। गौरव ठाकुर ने 'काकचेष्टा, बको ध्यानं, श्वाननिद्रा तथैव च। अल्पाहारी,गृहत्यागी, विद्यार्थी पंचलक्षणम्॥ 

श्लोक की आधुनिक संदर्भ में व्याख्या करते हुए बताया कि विद्यार्थी में कौए जैसी जिज्ञासा, बगुले जैसा लक्ष्य केन्द्रित ध्यान, कुत्ते जैसी सजगता, भोजन सहित शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध आदि सभी विषयों का सम्यक् सेवन करने का अभ्यास होना चाहिए। 

इस्कॉन से आए पूज्य संत जगद्-बन्धु जयदेव दास जी ने कहा कि शिक्षा में आध्यात्मिकता के बिना शिक्षा न तो आनंददायक हो सकती है न ही व्यक्ति को पूर्ण विकसित कर सकती है। इस सेमिनार में दिल्ली और आसपास के अनेक विद्यालयों के चेयरमैन, प्रबन्धक, प्रिंसिपल्स और अनुभवी शिक्षक तथा सूर्या फाउण्डेशन के प्रमुख कार्यकर्त्ता उपस्थित थे।

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