खादी– विकसित भारत...

खादी– विकसित भारत का अभिमान : मनोज कुमार, अध्यक्ष, खादी और ग्रामोद्योग आयोग, भारत सरकार

बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार 

नई दिल्ली। पूज्य बापू की महान विरासत खादी के लिए आवाज पिछले 10 वर्षों में पहली बार राज्य सभा सांसद और कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उठायी है। लेकिन अफसोस ये आवाज खादी की भलाई के लिए नहीं बल्कि खादी से जुड़े लाखों कामगारों को सामूहिक रूप से अपमानित और उनको निरुत्साहित करने के लिए उठाई गयी। कांग्रेसी चरित्र के अनुसार एक अंग्रेजी अखबार में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता ने महात्मा गांधी की खादी को लेकर झूठ का ताना-बाना बुना है। लेकिन सवाल ये है कि 10 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता को आखिर खादी की याद आई कैसे? जिस खादी का 10 वर्ष पहले तक कोई नामलेवा नहीं था, उसके लिए कांग्रेस पार्टी क्यों ‘दुष्प्रचार का चक्रव्यूह’ रच रही है? हर राष्ट्रवादी भारतीय की पहचान, युवा भारत की धड़कन, देश की आन, बान और शान राष्ट्रीय धरोहर खादी को लेकर कांग्रेसी कुचक्र का ‘सत्य’ जानकर आप हैरान रह जाएंगे। सत्य ये है कि पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वैश्विक स्तर पर चल रही ‘खादी क्रांति’ से कांग्रेस बुरी तरह से डरी हुई है। कांग्रेस को समझ नहीं आ रहा है कि जिस खादी को उन्होंने वेंटिलेटर पर पहुंचा दिया था वो 10 वर्षों में कैसे स्वस्थ होकर दुनिया के बड़े-बड़े ब्रांड को टक्कर दे रही है? कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता ये है कि जो खादी उनके कार्यकाल में सिर्फ नेताओं की अलमारी की शोभा बनकर रह गयी थी वो अब घर-घर में, जन-जन में कैसे लोकप्रिय हो रही है?

खादी उद्योग को मिली संजीवनी

खादी आत्मनिर्भर भारत की आत्मा है। ग्रामीण भारत के अर्थतंत्र का आधार है। विश्व में खादी ही एक ऐसा वस्त्र है जिसका अपना गौरवशाली इतिहास है। स्वतंत्रता के बाद इस वैभवशाली इतिहास को संजोने और खादी को उसके मूल स्वरूप में बचाकर रखने की जिम्मेदारी सरकार की थी। लेकिन लंबे समय तक शासन करनेवाली कांग्रेसी सरकारों ने खादी को सिर्फ प्रतीक के रूप में बचाकर रखा, जबकि खादी की शक्ति नये भारत के नवनिर्माण की थी, विकसित भारत की मजबूत आधारशिला रखने की थी। सही मायने में खादी को ‘नयी शक्ति’ 2014 में तब मिली जब देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सशक्त नेतृत्व वाली सरकार बनी। खादी को जैसे संजीवनी मिल गयी। जिस खादी और ग्रामोद्योग की बिक्री वित्तवर्ष 2013-14 के दौरान सोनिया गांधी के नेतृत्व में चलनेवाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में 31154.20 करोड़ रुपये थी वो 5 गुना बढ़कर वित्तवर्ष 2023-24 में 155673.12 करोड़ रुपये पहुंच गयी। प्रधानमंत्री मोदी की ब्रांड शक्ति से खादी वस्त्रों की बिक्री भी पिछले 10 वर्षों में 1081.04 करोड़ रुपये से 500.90 प्रतिशत बढ़कर 6496 करोड़ रुपये पहुंच गयी। खादी और ग्रामोद्योग के उत्पादन में भी पिछले 10 वर्षों में वृहद स्तर पर बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2013-14 में जहां खादी और ग्रामोद्योग का उत्पादन 26109.08 करोड़ रुपये था वहीं 10 वर्षों में 314.79 प्रतिशत बढ़कर यह 108297.68 करोड़ रुपये पहुंच गया। इसी दौरान खादी वस्त्रों के उत्पादन में 295.28 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो 811.08 करोड़ रुपये से बढ़कर 3206 करोड़ रुपये हो गया। इस दौरान खादी और ग्रामोद्योग से जुड़े कारीगरों को बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर प्राप्त हुए। वर्ष 2013-14 में जहां 1.3 करोड़ कारीगरों और उद्यमियों को रोजगार मिला वहीं वर्ष 2023-24 में 43.65 प्रतिशत वृद्धि के साथ 1.87 करोड़ लोगों को रोजगार मिला। इस समय देश में करीब 3 हजार खादी की संस्थाएं कार्यरत हैं जिनके माध्यम से करीब 5 लाख खादी कारीगरों को रोजगार मिल रहा है, जिसमें 80 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है।

खादी राष्ट्रीय ध्वजों की बिक्री में भारी उछाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चले ‘हर घर तिरंगा अभियान’ ने खादी के राष्ट्रीय ध्वजों की बिक्री को 1101.15 प्रतिशत तक बढ़ाया है। यूपीए सरकार के दौरान वर्ष 2013-14 में देश में जहां खादी से बने राष्ट्रीय ध्वजों की बिक्री सिर्फ 87 लाख थी, वहीं वर्ष 2023-24 में ये बढ़कर 10.45 करोड़ रुपये तक पहुंच गयी। पिछले तीन वर्षों में, जब से तिरंगा यात्रा की शुरूआत हुई है, खादी के राष्ट्रीय ध्वजों की कुल बिक्री 33 करोड़ रुपये को पार कर गयी है। इस बिक्री का सीधा लाभ खादी कारीगरों को अतिरिक्त पारिश्रमिक के रूप में हो रहा है, जो इस बात को सिद्घ करता है कि तिरंगा यात्रा से खादी जगत को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है। 

खादी कारीगरों के पारिश्रमिक में बड़ी वृद्धि

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने अपने आलेख में आरोप लगाया है कि सरकारी नीति विफल होने की वजह से खादी का काम करनेवाले कामगारों को उचित मेहनताना नहीं मिल रहा है, जबकि सच्चाई इससे उलट है। यूपीए शासन के समय वर्ष 2013-14 में खादी कामगारों को प्रति लच्छा 4 रुपये मिलता था जिसे अब बढ़ाकर प्रति लच्छा 10 रुपये कर दिया गया है। 10 वर्षों में मजदूरी में 150 प्रतिशत की वृद्घि ये दर्शाती है कि खादी के कामगारों के प्रति सफल सरकारी नीति की वजह से ना सिर्फ खादी उद्योग फलफूल रहा है बल्कि खादी के काम के प्रति कारीगरों का रुझान भी बढ़ा है। 

सरकारी आपूर्ति में खादी उत्पादों की बढ़ी भागीदारी

कांग्रेस की सम्मानित नेता और राज्य सभा सांसद सोनिया गांधी ने अपने लेख में एक बेबुनियाद आरोप ये भी लगाया है कि सरकारी खरीद में गिरावट की वजह से खादी उद्योग को भारी नुकसान हुआ है। जबकि हकीकत यह है कि उनके शासन काल में वित्तवर्ष 2013-14 में खादी उत्पादों की सरकारी आपूर्ति सिर्फ 42.25 करोड़ रुपये थी जो पिछले 10 वर्षों में बढ़कर 111.86 करोड़ रुपये तक पहुंच गयी है। इस बढ़ी हुई आपूर्ति का सीधा फायदा हमारे ग्रामीण खादी कारीगरों को मिल रहा है। 

पूज्य बापू की खादी को मिली वैश्विक पहचान 

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने बिना किसी तथ्य के ये संगीन आरोप लगाया है कि बापू की खादी को उसकी पहचान से वंचित किया जा रहा है। जबकि हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानसेवक हैं जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की खादी के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर हैं। वो ना सिर्फ स्वयं खादी पहनते हैं बल्कि हर मंच से खादी का प्रचार-प्रसार भी करते हैं। मन की बात हो चाहे जी-20 सम्मेलन, विदेश में भारतीय डायस्पोरा हो या फिर राजनीतिक मंच, हर जगह से उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय वस्त्र खादी को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। 

बापू की विरासत खादी पर सियासत क्यों?

सवाल ये है कि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने अपने आलेख में इन पांच सवालों का जवाब क्यों नहीं दिया? उन्होंने ये तथ्य क्यों छिपाए?

1. 2014 से पहले खादी ग्रामोद्योग का उत्पादन कितना था?

2. 2014 से पहले खादी ग्रामोद्योग की बिक्री कितनी थी? 

3. 2014 से पहले खादी ग्रामोद्योग में रोज़गार कितना था? 

4. 2014 से पहले खादी ग्रामोद्योग में कारीगरों की पारिश्रमिक कितनी थी?

5. 2014 से पहले सिर्फ़ खादी का उत्पादन और बिक्री कितनी थी?

सोनिया गांधी का आलेख खादी सेक्टर में कार्यरत 5 लाख कारीगरों की मेहनत और उनके आत्मनिर्भर भारत अभियान के प्रयासों पर सीधा हमला है। ये पूज्य बापू की खादी और आत्मनिर्भर भारत की आत्मा पर सीधा हमला है। विदेशी ताकतें पूर्व में भी खादी के खिलाफ साजिशें रचती रही हैं। लेकिन बापू के नेतृत्व में खादी, ना तो कभी झुकी थी, और ना ही माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कभी झुकेगी। ‘नये भारत की नयी खादी’ नये इरादों वाली है। सोनिया गांधी का आलेख ‘खादी क्रांति’ को रोकने की असफल कोशिश है। खादी जगत और खादी कारीगर अब स्वयं शहर-शहर ‘खादी शंखनाद’ का आगाज करेंगे। खादी का एक-एक कार्यकर्ता इसका जवाब देगा।

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