मौजूदा दौर में न सिर्फ उर्दू पत्रकारिता बल्कि अन्य भाषाएं भी प्रभावित हुई हैं : जय शंकर गुप्ता
कुलवंत कौर, संवाददाता
नई दिल्ली। दिवंगत अतीक मुजफ्फर पुरी की 9वीं पुण्य तिथि के अवसर पर उनके बड़े बेटे जावेद रहमानी ने अतीक मुजफ्फर पुरी: हयात ओ खिदमात नाम से उर्दू में 400 पेज की किताब लिखी है। कार्यक्रम का आयोजन उर्दू घर के सभागार में किया गया। यह कार्यक्रम अंजुमन तरक्की उर्दू (हिन्द) और सायबान फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित किया गया। इस अवसर पर न सिर्फ पुस्तक का विमोचन किया गया बल्कि एक सेमिनार का भी आयोजन किया गया। सेमिनार का विषय था "उर्दू पत्रकारिता की चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ" पर बुद्धिजीवियों ने विस्तार से चर्चा की।
अतीक मुजफ्फर पुरी हयात ओ खिदमात
पुस्तक के लेखक जावेद रहमानी ने परिचयात्मक टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज की बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इसमें पत्रकारिता, राजनीति और साहित्य से जुड़ी वो प्रमुख हस्तियां शामिल हैं जिन्होंने आज छुट्टी का दिन होने के बावजूद दिवंगत अतीक मुजफ्फरपुरी की पुण्यतिथि के मौके पर किताब के विमोचन में हिस्सा लिया और इस बात का सबूत दिया कि स्व. अतीक मुजफ्फर पुरी ने जीवन भर उर्दू में जीवन बिताया।
सेमीनार की अध्यक्षता प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान और प्रोफेसर एमेरिटस और अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि मरहूम अतीक मुजफ्फरपुरी सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व के मालिक थे, मरहूम बेहद शांत स्वभाव के मालिक थे। उन्होंने कहा कि मृतक जीवन भर केवल काम में विश्वास रखते थे और उन्होंने कभी प्रसिद्धि की इच्छा नहीं की। यही कारण है कि उनके लेखन को पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि उन्होंने कितना बड़ा काम किया और चुपचाप चले गये। आज उनके बेटे ने एक अच्छा बेटा होने का हक पूरा कर दिया है।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जावेद रहमानी ने दिवंगत की अधिकांश महत्वपूर्ण रचनाओं को एक साथ लाने और उनकी पत्रकारिता सेवाओं को हम तक पहुंचाने का बड़ा काम किया है, यह नई पीढ़ी के लिए बहुत बड़ी संपत्ति है। मृतकों की रचनाएँ आज की पृष्ठभूमि के खंडित दैनिक जीवन को भी दर्शाती हैं। मृतक एक उर्दू पत्रकार और शिक्षाविद् थे।
पूर्व सांसद और राजदूत मीम अफजल ने कहा कि मरहूम अतीक मुजफ्फर पुरी हमारे अखबार से लंबे समय तक जुड़े रहे और आज मुझे खुशी है कि यहां सभी बुद्धिजीवियों ने अखबार ए नौ का जिक्र किया और कहा कि यह अखबार अफजल साहब के संपादन में था। उस समय काफी हद तक नई पीढ़ियों का विकास हुआ है। उन्होंने कहा कि मृतक ने बहुत कुछ जानने का दावा नहीं किया लेकिन उन की उर्दू भाषा पर गहरी पकड़ थी। इसीलिए, जब हमने उनके साथ 'अखबार ए नौ' में काम किया तो हमने उनके लेखन को बिना देखे अखबार में प्रकाशित होने दिया। ऐसा बहुत कम होता है कि संपादक अपने स्टाफ की रचनाओं को बिना देखे प्रकाशित कर दे, लेकिन इसका मुख्य कारण यह था कि अतीक साहब कई मायनों में एक ऊंचे और ऊंचे विचारक थे और उन्होंने पत्रकारिता को कभी भी एक पेशा नहीं माना बल्कि इबादत का दर्जा दिया।
हिमालया ड्रग के निदेशक डॉ. सैयद फारूक ने कहा कि आज के दौर में यह बहुत जरूरी है कि हम अपने समकालीनों की सेवाओं को पहचानें और उनकी याद में यहां एकजुट होकर यह इस बात का पुख्ता सबूत है और विरासत का संरक्षक भावी पीढ़ियों को अपने प्रयासों के प्रति आश्वस्त करना जानता है। जरूरी है कि अतीक मुजफ्फर पुरी को नई पीढ़ी न सिर्फ यह किताब का अध्ययन करे, बल्कि अपने जीवन में इसका प्रभाव भी बनाए रखे।
अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद के महासचिव डॉ. अतहर फारूकी ने कहा कि आज उर्दू घर के सभागार में उर्दू साहित्य और पत्रकारिता से जुड़ी प्रमुख हस्तियों का जमावड़ा यह दर्शाता है कि मरहूम अतीक मुजफ्फरपुरी कितने नेकदिल और सिद्धांतवादी थे और एक करिश्माई व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने कहा कि ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि ऑडिटोरियम के अंदर की सीटें तो दूर की बात है आज मैं देख रहा हूं कि जितने लोग बैठे हैं उससे ज्यादा लोग अंदर और बाहर खड़े हुए हैं। इससे यह भी पता चलता है कि आज भी साहित्यिक अभिरुचि वाले लोगों की कमी नहीं है। आपको गर्व होगा कि आपको उर्दू संस्थान में आधुनिक तकनीक से सुसज्जित लाइब्रेरी देखने को मिल रही है। हम कह सकते हैं कि यह ब्रिटिश लाइब्रेरी की शैली में नहीं है कम से कम उससे कम भी नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार व प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया भारत सरकार के सदस्य जय शंकर गुप्ता ने वर्तमान उर्दू पत्रकारिता की चुनौतियों एवं संभावनाओं पर अपना मुख्य भाषण देते हुए कहा कि आज पत्रकारिता कई अर्थों में स्वतंत्र नहीं है। यहां आप सभी लोग इस तथ्य की गवाही देंगे कि आप समय-समय पर स्वतंत्र प्रेस देखने के लिए तरस जाते हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप जनता की समस्याओं और तथ्यों के साथ जनता की का लेख लिखते हैं तो कहीं न कहीं वह लेखन एक विपक्षी नेता की कमी को पूरा करता है। उन्होंने कहा कि मरहूम अतीक मुजफ्फरपुरी की रचनाएं हमें इस पत्रकारिता अखंडता को फिर से स्थापित करने की प्रेरणा देती हैं।
मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार व पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी ने कहा कि मरहूम अतीक मुजफ्फरपुरी एक उच्च कोटि के पत्रकार थे। आज मेरे प्रिय जावेद रहमानी ने उन पर एक किताब लिखकर एक अच्छा बेटा होने का फ़र्ज़ निभाया है। उन्होंने आगे कहा कि स्वर्गीय अतीक मुजफ्फरपुरी भी नई पीढ़ियों के लिए एक प्रकाशस्तंभ हैं क्योंकि उन्होंने बड़ी संख्या में युवा पत्रकारों को प्रशिक्षित किया है।
दिल्ली उर्दू अकादमी के नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष प्रो. शहपर रसूल ने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि अतीक साहब की शायरी में बहुत परिपक्वता थी। उनके गजलों के कुछ शब्द जो हमने किताब में पढ़े हैं उससे पता चलता है कि उन्होंने अपनी शायरी में समाज की इन्हीं बाधाओं को अपनी शायरी के जरिए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है।
एनसीपीयूएल के पूर्व निदेशक प्रो. मुहम्मद ख्वाजा ईकरामुद्दीन ने कहा कि यह हमारी त्रासदी रही है कि जो खबरें पाठकों को पढ़ने को मिलती हैं वे तथ्यों से दूर होतीं। आपको इसके भीतर सत्य को खोजना होगा। इसके विपरीत, अगर आप अब पत्रकारिता में कोई खेल की खबरें पढ़ेंगे तो उसमें आपको तथ्य मिलेंगे। हालाँकि, चिंता का विषय यह है कि जो रचनाएँ या ऐसी कहानियाँ समाज को बाँटने का काम भी कर सकती हैं, उन्हें अधिक से अधिक नमक-मसाला डालकर चटखारा बना दिया जाता है। ऐसे माहौल में यह किताब नई पीढ़ी के लिए किसी तोहफे से कम नहीं है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रोफेसर मुहम्मद काज़िम ने कहा कि दिवंगत अतीक मुजफ्फरपुरी ने कभी अपने कलम को झुकने नहीं दिया और अपनी आखिरी सांस तक पत्रकारिता की प्रतिष्ठा बरकरार रखी। उन्होंने कहा कि दिवंगत की पत्रकारिता में एक लंबी यात्रा रही है, जिससे सैकड़ों लोग उनकी लेखनी से लाभान्वित हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील जेड के फैजान ने कहा कि साहित्य से मेरा रिश्ता है और मैं साहित्य गोष्ठियों में भाग लेता रहता हूं। मैं बहुत समय पहले स्वर्गीय अतीक मुजफ्फर पुरी के लेखन से प्रभावित हुआ था। यही कारण है कि जब मुझे सेमिनार का निमंत्रण मिला तो मैंने अपने सभी व्यस्त कार्यक्रम किनारे रखकर कार्यक्रम में शामिल होने को महत्व दिया।
भोपाल से तशरीफ़ लाए अतीक मुजफ्फपुरी के साढू एम एस हसन ने कहा कि मरहूम से मेरी कई यादें जुड़ी हुई हैं। स्वर्गीय अतीक मुजफ्फरपुरी के बारे में मेरे दिवंगत पिता हमेशा कहा करते थे कि अतीक मुजफ्फरपुरी की काबिलियत हर क्षेत्र में दिखती है। उन्होंने आगे कहा कि मुझे दुख है कि वह हमें जल्दी छोड़कर चले गए अगर आज होते तो उन्हें गर्व होता कि उनके बच्चे उनके शैक्षणिक मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।
मसूद खान ने कहा कि मरहूम अतीक मुजफ्फरपुरी से मेरा पुराना रिश्ता था। मैंने अपने राजनीतिक जीवन में भी कई बार उनसे सलाह ली है। उन्होंने कहा कि ऐसा व्यक्तित्व हमारी पीढ़ियों के लिए एक जीवंत उदाहरण छोड़ गया है जिसे आज के युग में निभाना बहुत मुश्किल है।
मशहूर बिजनेस मैन सर्वोकोण के डायरेक्टर हाजी कमरुद्दीन ने कहा की यह किताब ने उनके पत्रकारिता और शैक्षणिक गुणों से हम सभी को अवगत कराया है। मशहूर शायर डॉ. माजिद देवबंदी ने कहा कि मरहूम अतीक मुजफ्फरपुरी ने बेहद साफगोई से खामोश रहकर उर्दू शिक्षा के लिए जो कार्य किए हैं वह बहुत अहम है। सेमिनार की शुरुआत मुस्लिम लीग दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना निसार अहमद हुसैनी नक्शबंदी ने पवित्र कुरान की तिलावत से की।
मशहूर शायर और पत्रकार डॉ. मोईन शादाब ने सेमीनार का सफल संचालन करते हुए दिवंगत अतीक मुजफ्फरपुरी के साथ अपने लंबे समय के रिश्ते का जिक्र किया और कहा कि अतीक मुजफ्फरपुरी के साथ काम करना मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है, मैंने उनसे उनकी शायरी सुनी है आप बहुत अच्छे कवि भी थे। स्वर्गीय अतीक मुजफ्फर पुरी का उर्दू भाषा से गहरा रिश्ता था।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में पत्रकार, साहित्यिक, राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र के लोग उपस्थित थे। इनमें एनआईओएस के निदेशक डॉ. शोएब रजा वारसी, ओखला प्रेस क्लब के अध्यक्ष और एनडीटीडी के मुन्ने भारती, वतन समाचार के संपादक मुहम्मद अहमद, जाने-माने पत्रकार मारुफ रजा, फेस ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. मुश्ताक अंसारी, दिल्ली हज के पूर्व अध्यक्ष डॉ. परवेज़ मियां, लेक्चरर जावेद अख्तर वारसी, नरेंद्र मोदी अध्यन केन्द्र के चेयरमैन प्रो. जसीम मुहम्मद, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के नवनिर्वाचित बीओटी सदस्य सिकंदर हयात, ऑल इंडिया रेडियो से क़मरुल ज़मा, शमा एजुकेशन वेलफेयर सोसायटी के महा सचिव डॉ. फहीम बेग, डीडी न्यूज़ अंग्रेज़ी के एडीटर अबसारुल हसन, एहतिशामुल हसन, वरिष्ठ अंग्रेजी पत्रकार अनिल माहेश्वरी, रखशांदा रूही, चश्मा फारूकी, दौर ए जदीद के एडिटर एसटी रजा, अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद के सहायक सचिव साकिब सिद्दीकी, डॉ. हेड गेवार अस्पताल के सीएमओ डॉ. मोहम्मद आदिल, जमीयत उलेमा हिंद सदभावना मंच दिल्ली के अध्यक्ष मौलाना जावेद कासमी, ऑल इंडिया इमाम फाउंडेशन के चेयरमैन मौलाना आरिफ कासमी, ईरान कल्चर हाउस के वरिष्ठ पदाधिकारी कारी यासीन, मौलाना साजिद रशीदी, यूएनआई उर्दू संपादक आबिद अनवर, अब्दुस सलाम आसिम, फारूक अर्गली, उर्दू अकादमी गवर्निंग काउंसिल सदस्य फिरोज सिद्दीकी, जफर अहमद, मशहूर शायर शिव कुमार बिलग्रामी, सज्जादानशीन दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया सैयद काशिफ़ अली निज़ामी, भारत एक्सप्रेस उर्दू के संपादक खालिद रज़ा, जाहिद हुसैन, पत्रकार नौशाद उस्मानी, साबिर अली, डॉ. शमीम अंसारी, निसार अहमद, गुलज़ार अहमद, जहीरुल हसन, इरफ़ान राही सैदपुरी, अमन न्यूज़ के संपादक एम ए बर्नी, एडवोकेट इमरान अजीम, पहली ख़बर के संपादक इमरान कलीम, सैयद शाहिद राहत, ट्रांसपेरेंट न्यूज़ के संपादक अज़हर इमाम रिज़वी، डॉ. वसीम राशीद, वरिष्ठ पत्रकार मुहम्मद अहमद काज़मी, पंडित संदीप मिश्रा, मुहम्मद मुजाहिद, मुहम्मद शाकिर हुसैन, कलीम उल हफीज, प्रोफेसर मुहम्मद इम्तियाज़ और अन्य के नाम उल्लेखनीय हैं।
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