सूर्या फाउण्डेशन...

बच्चों के बस्ते का वजन करेंगे कम : सूर्या फाउण्डेशन

कुलवंत कौर, संवाददाता 

नई दिल्ली। नेशनल एजूकेशन पॉलिसी (एनईपी)-2020 के प्रति जागरूकता के लिए सूर्या फाउण्डेशन ने दिनांक 29 अप्रैल 2023 को बी-3/330, पश्चिम विहार, नई दिल्ली में सेमिनार का आयोजन किया। सूर्य भारती पुस्तकों के विद्वान लेखक एनसीईआरटी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एच.एल. शर्मा ने सेमिनार में उपस्थित अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए बताया कि सूर्या फाउण्डेशन के चेयरमैन पद्मश्री जयप्रकाश अग्रवाल जी का विचार था कि बच्चों के बस्ते का बोझ और मानसिक तनाव कम किया जाए और शिक्षा को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाया जाए।

उनकी प्रेरणा से सूर्या फाउण्डेशन द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा थिंक टेैंक के माध्यम से सभी विषयों को समेकित करके ‘एक कक्षा-एक किताब’ आल इन वन सूर्य भारती पुस्तकें बनाई गईं। प्रोफेसर एच.एल. शर्मा की अगुवाई में देश के जाने-माने शिक्षाविदों एवं विषय विशेषज्ञों प्रो. चन्द्रभूषण, श्री गंगादत्त शर्मा, श्री प्रभाकर द्विवेदी, श्री शांतिस्वरूप रस्तोगी, श्री टी.आर. गुप्ता, डॉ. गुज्जरमल्ल वर्मा, प्रो. डी. पी. नैयर जैसे अनेक विषय विशेषज्ञों ने कई वर्षों की कठोर मेहनत करके ये पुस्तकें बनाईं। सूर्य भारती की पुस्तकों में शिक्षण के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया है। खेल-खेल में पढ़ाई कराई जा सकती है, इस बात पर विशेष जोर दिया गया है। 

सूर्य भारती पुुस्तकों में भारत की महान परंपरा एवं संस्कृति का परिचय, कहानी, योग, पहेली, और ढेर सारे  चित्रों को स्थान दिया गया है। संस्कार के साथ-साथ पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी प्रेरित किया गया है। सूर्य भारती पुस्तकों में पाठों की रचना सीखने के न्यूनतम स्तर को ध्यान में रखकर की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति(एनईपी)-2020 का अनुपालन करते हुए एक ही पुस्तक में सभी विषयों को समेकित (इंटीग्रेट) किया गया है। ये पुस्तकें बच्चों के साथ-साथ माता-पिता, शिक्षकों एवं प्रबंधकों के लिए भी उपयोगी हैं। 

आज सूर्य भारती की पुस्तकें 18 राज्यों में 80 से अधिक विद्यालयों, 300 से अधिक संस्कार केन्द्रों व एकल विद्यालयों एवं 10 से अधिक अन्य सामाजिक संस्थाओं में पढ़ाई जा रही हैं। विद्या भारती, डीएवी, सनातन धर्म शिक्षा समिति तथा देशभर के अनेक प्रतिष्ठित विद्यालयों द्वारा इन समेकित पुस्तकों की सराहना करते हुए सूर्या फाउण्डेशन को पत्र भेजे हैं। सेमिनार की इसी कड़ी में मुख्य वक्ता श्रीमती मंजू श्रीवास्तव ने कहा कि हमारी शिक्षा राष्ट्र के मौलिक चिंतन पर आधारित होनी चाहिए। आज भी अपने देश में ऐसे गांव हैं, जो शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से रहित हैं।

भारत की मूल संस्कृति से द्वेष रखने वाले उन्हें अपने जाल में फंसाकर उन्हें धर्मान्तरित करने का प्रयास करते हैं। यह हमारी जिम्मदारी है कि हम उन तक शिक्षा और स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाएँ पहुचाएं। इस दिशा में वर्षो से एकल विद्यालय कार्य कर रहे हैं। उन्होंने मातृशक्ति का आह्वान किया कि वे दुर्गा के रूप में देश की रक्षा, लक्ष्मी के रूप में आर्थिक जिम्मेदारी तथा सरस्वती के रूप में शिक्षा देने का कार्य करें। अंत में अनुभवजन्य शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि किताबी ज्ञान के साथ-साथ प्रकृति के सान्निध्य में पेड़ पौधों और पशु पक्षियों के बीच जाकर उनका अध्ययन करे। अंत में सूर्य भारती की पुस्तकों की गुणवत्तायुक्त शिक्षा की प्रशंसा करते हुए अपने वक्तव्य को पूरा किया।

सेमिनार के विशेष अतिथि प्रोफेसर दीप नारायण पाण्डेय ने कहा कि हमारे संस्कारों के अभाव में नई पीढ़ी स्वालंबी नहीं बन पा रही है। आज के बच्चों को मोबाइल चलाना तो आता है लेकिन यदि जरूरत पड़ जाए तो खाना बनाकर अपना पेट भी नहीं भर सकते।  उन्हें नहीं पता होता कि पैकेट वाला दूध जो उन्हें मिल रहा है, वह कहाँ से और कैसे आता है। आधुनिक सुविधाएँ बिजली आदि के बिना वे नहीं रह सकते। क्योंकि उन्हें हैंड पम्प या कुए से पानी निकालना, आटा गूंधना और रोटी बनाना, गाय भेैंस या बकरी का दूध निकालना आदि काम बिल्कुल नहीं आते। सेमिनार का कुशल एवं प्रभावी संचालन शिक्षाविद श्री गोविन्दराम अग्रवाल ने किया। सेमिनार में दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्रें से अलग-अलग विद्यालयों के शिक्षक, प्रधानाचार्य एवं प्रबंध समिति के सदस्य उपस्थित रहे। सबने कार्यक्रम की सराहना की।

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