शिक्षा में भारत की सबसे बड़ी समस्या से निपटने के लिए सिनर्जी शिखर सम्मेलन
बंसी लाल, वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली। कोविड ने शिक्षा के क्षेत्र में वर्षों की मेहनत को बेकार सा कर दिया है। यूनिसेफ के अनुसार, कोविड में स्कूल बंद होने के बाद 10 वर्षीय बच्चों में से 70% से अधिक के पास मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) कौशल नहीं है। सोमवार 11 जुलाई कों इस विषय पर दो दिवसीय सिनर्जी शिखर सम्मेलन - “एफएलएन में एक प्रतिमान बदलाव भारत को महीनों में साक्षर बनाना - वर्षों में नहीं”। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में आयोजित किया गया । इस पृष्ठभूमि से सिनर्जी शिखर सम्मेलन का यह विषय, शिक्षा के क्षेत्र में तत्काल कार्रवाई का आह्वान है।
दो दिवसीय इस सिनर्जी शिखर सम्मेलन में पहली बार भारत के सबसे बड़े शिक्षा संकट को संयुक्त रूप से हल करने के लिए कई प्रमुख सीएसआर, गैर सरकारी संगठनों, दूतावासों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों और सरकार के प्रमुखों को एक साथ लाया गया। दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के पहले दिन मुख्य अतिथि माननीय राजनाथ सिंह,रक्षा मंत्री, भारत सरकार थे। मान्य राजनाथ सिंह ने कहा कि बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता के विशाल संकट के परिवर्तनकारी समाधानों का पता लगाने के लिए सभी हितधारकों को एकजुट करने का समय आ गया है।
रणनीतिक सोच के बिना और अत्यधिक प्रगतिशील समाधानों के बिना साक्षरता संकट गहराता रहेगा। कक्षा 3 के बच्चों ने अभी कुछ ही समय हुआ स्कूल में फिर से कदम रखा है। ग्रेड 5 के बच्चों ने कोविड़ से पहले ग्रेड 3 में जो कुछ भी सीखा, उसमें से अधिकांश भुला दिया। इस प्रकार, प्राथमिक कक्षा के अधिकांश बच्चों को तत्काल सहायता की आवश्यकता है। हम इस बड़े संकट को हल करने के लिए इसे अकेले शिक्षकों पर नहीं छोड़ सकते। सभी समुदायों को संगठित करने की जरूरत है और समाज के सभी वर्गों को तालमेल के साथ काम करना होगा। एफएलएन को एक आपात स्थिति के रूप में माना जाना चाहिए, और इससे निपटने के लिए हमें पूरे समाज का सहयोग चाहिये ।
उन्होंने डॉ. सुनीता गांधी, पूर्व अर्थशास्त्री, विश्व बैंक, और संस्थापक, डिगनिटी एजुकेशन विज़न इंटर्नैशनल यानी कि देवी संस्थान - की नई ग्लोबल ड्रीम अल्फा, या एक्सेलरेटिंग लर्निंग फॉर ऑल पद्धति विकसित करने के लिए (एफएलएन )इनके नूतन प्रयोग की प्रशंसा की। उन्होंने कहा “भारत को, मात्र 90 दिनों के भीतर सीखने की प्रक्रिया पूरी करने वाले, अल्फा, ग्लोबल ड्रीम’ जैसे किसी अभूतपूर्व समाधान की आवश्यकता है। पांच साल की स्कूली शिक्षा के बाद भी पारंपरिक तरीके, मूलभूत कौशल विकसित करने में पूरी तरह विफल रहे हैं। मुझे खुशी है कि( एएलएफए) अब भारत के दस सबसे पिछड़े ज़िलों में से दो में लागू किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में शामली और उड़ीसा में संबलपुर। कोविड़ टीकाकरण की तरह ही हर बच्चे को( एएलएफए ) शिक्षा तुरंत दी जानी चाहिए।
कार्यक्रम के पहले दिन डॉ. सुनीता गांधी द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। विघटनकारी तकनीक आधारित साक्षरता- तत्काल वैश्विक कार्रवाई के लिए एक रोडमैप- ब्लूम्सबरी द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस परिस्थिति में प्रत्यक्ष परिवर्तन तीन चरणों के माध्यम से संभव है, राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन जिसमें प्रत्येक हितधारक को छात्रों से लेकर सरकारी अधिकारियों तक सभी स्तरों पर शामिल होना चाहिए जैसे पल्स पोलियो अभियान, सरकार की प्रतिबद्धता और परिवर्तनकारी पाठ्यक्रम व शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया जो युवा और वृद्ध, स्वयंसेवकों और सभी शिक्षकों को शामिल होने की अनुमति दे।
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