व्यक्ति का मौलिक चिंतन...

 व्यक्ति का मौलिक चिंतन मातृभाषा में ही संभव है : मुकेश अग्रवाल 

कुलवंत कौर 

नई दिल्ली। हिंदी चिंतन साहित्य सभा, पीजीडीएवी महाविद्यालय प्रातः द्वारा 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के अवसर पर " मातृभाषा का महत्व " विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता महाविद्यालय के पूर्व-प्राचार्य एवं प्रसिद्ध भाषाविद डॉ. मुकेश अग्रवाल थे। कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। उसके पश्चात हिंदी विभाग के प्रभारी एवं कार्यक्रम के संयोजक डॉ मनोज कुमार कैन ने मुख्य अतिथि का परिचय देने के साथ ही "चिंतन" साहित्य सभा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि इस सभा का उद्देश्य बच्चों के लिए ऐसी गतिविधियों का आयोजन करना है, जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो सके। प्रत्येक विद्यार्थी इस मंच के माध्यम से अपनी प्रतिभा का संपूर्ण विकास करें।

महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. कृष्णा शर्मा ने 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' की पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए कहा कि लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण हेतु इस दिवस की प्रासंगिकता निर्विवाद है। मातृभाषा के महत्त्व पर विचार करते हुए उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को उद्धृत किया। डॉ. कलाम की मान्यता थी कि वे महान वैज्ञानिक इसलिए बन सके, क्योंकि उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा मातृभाषा में ग्रहण की थी। 

मुख्य वक्ता डॉ. मुकेश कुमार अग्रवाल ने मातृभाषा के स्वरूप और उसके महत्त्व पर विस्तार पूर्वक विचार-विमर्श किया। मातृभाषा के स्वरूप पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि यह मनुष्य के मानसिक और आध्यात्मिक विकास का आधार है। व्यक्ति का मौलिक चिंतन मातृभाषा में ही संभव है। यही वजह है कि हमारे देश की 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' में 5वीं कक्षा तक की पढ़ाई का प्रावधान मातृभाषा में ही किया गया है। मातृभाषा माँ की भाषा है। हमारे परिवार की भाषा है। यह सभी बोलियों को जोड़ने की भाषा है। मातृ भाषाएँ न सिर्फ हमारी सांस्कृतिक शब्दावली की संरक्षक होती हैं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान भी हैं।

भारत में 19500 मातृ भाषाएँ हैं। इनमें से 270 भाषाओं को बोलने वालों की संख्या 10 हजार से भी कम है। यह अत्यंत दुखद स्थिति है। औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया भाषाओं के विलोपन से जुड़ी हुई है। भाषा का विलोपन देश की संस्कृति का विलोपन है। मातृभाषाओं का विलोपन ही साहित्य के विलोपन का कारण बनेगा। साहित्य में प्रयुक्त अधिकतर शब्दों, मुहावरों और लोकगीतों का सीधा संबंध मातृभाषा से ही है। अतः भाषाओं को विलोपन से बचाने हेतु मातृभाषा का संरक्षण आवश्यक है।

डॉ. अवंतिका सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया। संगोष्ठी में डा अवनिजेश अवस्थी, अभय प्रताप सिंह , के के श्रीवास्तव, संदीप रंजन, वेदप्रकाश, चैन सिंह, रिषिकेश, भरत, नरेन्द्र, परमानंद, हरीश चंद्रा, अनामिका, शीतल आदि प्राध्यापकों के साथ साथ  लगभग 200 विद्यार्थी उपस्थिति रहे।

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