पांचवीं और आठवीं में बोर्ड परीक्षा

पांचवीं और आठवीं में बोर्ड परीक्षा



शिक्षा को समाज की कसौटी माना जाता है अर्थात जो समाज जितना ही शिक्षित होता है उतना ही सभ्य विकसित और समृद्ध भी रहता है। शिक्षा के माध्यम से समाज की मूल इकाई व्यक्ति के आंतरिक एवं वाह्य दोनों प्रकार के व्यक्तित्व का विकास होता है। इसलिए शिक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए। अफसोस की बात यही है कि शिक्षा पर ध्यान देने की जगह उसकी उपेक्षा की गयी। प्राचीन भारत में जहां नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्व शिक्षा के केन्द्र हुआ करते थे। वहीं अब कहीं ज्यादा विश्व विद्यालय हैं लेकिन शिक्षा में गुणवत्ता की निरंतर कमी आती जा रही है। नैतिक शिक्षा के साथ ही विषय की शिक्षा भी ठीक से नहीं मिल पाती है। सरकारी प्राइम, री स्कूलों का तो भगवान ही मालिक है। इसमें भी सरकार ने पांचवी और आठवीं की बोर्ड परीक्षा को खत्म कर दिया था। इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हुई थी साक्षरता का प्रतिशत भले ही बढ़ गया था लेकिन गुणवत्ता कम हो रही थी। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इस मामले पर विचार पहले भी किया था लेकिन 2019 में इस पर संसद की मुहर लगी है। राज्य सरकारों को पांचवीं और आठवीं बोर्ड परीक्षा करानी पड़ेगी। शिक्षा जगत में इसके निश्चित ही अच्छे नतीजे नजर आएंगे। इसके साथ कुछ अन्य महत्वपूर्ण फैसले भी शिक्षा के क्षेत्र में लिये गये हैं। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में यह फैसला लिया है फिर भी देर आये दुरुस्त आये ही कहा जाएगा।


केन्द्र सरकार ने 5वीं और 8वीं में बोर्ड परीक्षा की व्यवस्था फिर से लागू कर दी है। इसके साथ ही एक विकल्प यह भी रखा गया है कि मई में दोबारा परीक्षा करायी जा सकेगी। राज्य सरकारों को अब पांचवीं और 8वीं कक्षा में परीक्षा कराने वाला अधिकार मिल गया है। निःशुल्क बाल शिक्षा अधिकार के तहत अब तक ऐसी व्यवस्था बनायी गयी थी कि कक्षा 8 तक किसी को अनुतीर्ण (फेल) नहीं किया जाता था। इसी निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक को संशोधित रूप में संसद ने राज्यसभा से भी पारित करा लिया है। निःशुल्क एवं बाल शिक्षा का अधिकार (दूसरा संशोधन) विधेयक 2017 को 2018 के मानसून सत्र में ही लोकसभा ने पारित कर दिया था। अब राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति के पास मंजूरी मिलने में कोई दिक्कत ही नहीं है। इस प्रकार मान लेना चाहिए कि यह अधिनियम अब कानून बन गया है।


संशोधित विधेयक में कक्षा में अनुतीर्ण होने की स्थिति में बच्चों को कक्षा में रोकने या नहीं रोकने का अधिकार राज्यों को दिया गया है। इस प्रकार जो राज्य परीक्षा लेना चाहते हैं वे खराब प्रदर्शन पर बच्चों को पांचवीं और आठवीं कक्षा में फेल कर सकेंगे। इसके साथ ही ऐसे छात्र-छात्राओं को एक अवसर यह भी दिया गया है कि फेल हुए बच्चों के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित करानी होगी। अगर बच्चे इस परीक्षा में भी पास नहीं होते हैं तो उन्हें फेल घोषित कर दिया जाएगा और एक वर्ष तक फिर से उसी कक्षा में उन्हें शिक्षा प्राप्त करनी होगी। विधेयक में संशोधन के साथ यह व्यवस्था भी की गयी है कि फेल होने वाले बच्चे को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा।


इस प्रकार छात्रों के हित को और उनके शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार को भी सुरक्षित रखा गया है सरकार ने इससे पूर्व प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूल की शिक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव इसलिए किया था ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर सकें। पहले यह व्यवस्था थी कि कक्षा पांच और कक्षा 8 में बोर्ड की परीक्षा ली जाती थी। यह बोर्ड जिला और ब्लाक स्तर के होते थे। प्राइमरी शिक्षा में कक्षा 5 की बोर्ड परीक्षा ब्लाक स्तर के स्कूलों की होती थी। एक ब्लाक में जितने भी प्राइमरी स्कूल होते थे उनके कक्षा 5 के बच्चे एक स्कूल में परीक्षा देने आते थे।


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