गॉंवो.........

गॉंवों की फिक्र किसी को नहीं



सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि करोड़ों-अरबों खर्च करने के बाद भी हमारे गांव आज भी सड़क, नाली, खरंजे, शौचालयों, स्ट्रीट लाइट, स्कूल और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में जीवन बसर करने को मजबूर हैं। गांवों के विकास के नाम पर जो सरकारी नौटंकी और स्वांग रचाया जा रहा है उसने गांवों की दशा और दिशा को बर्बाद कर दिया है हमारे महानगर भले ही चकाचौंधमय हैं, पर गांव उतने ही पिछड़े हुए हैं। कारण यह है कि हमारे राजनेताओं ने आज तक गांवों के विकास के लिए गम्भीर प्रयास नहीं किये हैं। गांवों में अभाव ही अभाव है। गांवों में ना तो पक्के मार्ग हैं, न पीने का जल है और न ही आधुनिक सुविधाएं ।


शिक्षा, चिकित्सा, बाजार जैसी मूलभूत सुविधाएं भी गांवों से कोसों दूर हैं। परिणामस्वरूप गांवों में रहना आनन्द का विषय नहीं बल्कि एक विवशता हो गई है। वर्षा के दिनों में पूरे के पूरे गांव कई बार दुसरे नगरों से कट जाते हैं और कीचडे और गारे से भर जाते हैं। कुटीर उद्योग-धंधे कारीगरी और परंपरागत रोजगार दिनों-दिन खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके हैं वहीं कृषि और उससे जुड़े तमाम दूसरे काम-धंधों की बढती लागत और कम मनाफे के कारण धीरे-धीरे खेती-किसानी से लोगों का मोह भंग हो रहा है। परिणामस्वरूप बेरोजगारी का आंकड़ा सुरसा के मुंह की तरह फैलता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए चल रही सरकारी योजनाओं में खुली लूट और धांधली से जरूरतमंदों को उनके हक का पैसा नहीं मिल पा रहा है। रोजगार और बेहतर नागरिक सुविधाओं की चाहत में गांवों की आबादी का शहरों की ओर पलायन हो रहा है। शासन प्रशासन को भी गॉंवों की फिक्र नहीं । 


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